जानिए, 5जी नेटवर्क में इंटरनेट की स्पीड को कितना पहुंचाया जा सकता है?

4जी नेटवर्क धीमा पड़ने लगा है। इसीलिए अब 5जी की तैयारी हो रही है। चलिए जानते हैं कि ये 5जी, 4जी से कैसे अलग है और ये नेटवर्क क्या कर सकता है। मोबाइल फोन में 3जी नेटवर्क के साथ इंटरनेट ब्राउजिंग की शुरुआत हुई। मोबाइल पर वेबसाइट्स खोली जाने लगीं, मैप भी दिखने लगा। SMS से भरी 2जी नेटवर्क की दुनिया धीरे धीरे खत्म होने लगी।

नई और हाई स्पीड प्रोसेसिंग चिप के विकास, ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क और वायरलेस नेटवर्क के विस्तार के साथ फोर्थ जेनेरेशन या 4जी नेटवर्क आया। यह तकनीकी छलांग थी।

स्मार्टफोन और टैबलेट्स में बिना किसी तार के हाई स्पीड डाटा आने जाने लगा। तेज डाटा स्पीड के कारण नेवीगेशन, मैसेजिंग और कई अन्य कामों के लिए ऐप्स का इस्तेमाल शुरू हो गया। मोबाइल फोन पर वीडियो भी आराम से देखे जाने लगे।

सबसे तेज 4जी नेटवर्क पर स्पीड औसतन 45एमबीपीएस (मेगाबिट्स पर सेकेंड) दर्ज की जाती है। उद्योग को उम्मीद थी कि इसे और बढ़ाया जा सकता है, लेकिन दुनिया भर में स्मार्टफोन की बढ़ती मांग के कारण 4जी नेटवर्क अब ओवरलोड का शिकार हो रहा है।

इसे कुछ इस तरह समझा जा सकता है कि हाईवे पर अकेली गाड़ी तेज रफ्तार भर सकती है, लेकिन अगर सड़क पर 1,000 और गाड़ियां हो तो स्पीड धीमी हो जाएगी। 5जी इसी मुश्किल को हल करने की तैयारी है।

चिप निर्माताओं को उम्मीद है कि 5जी नेटवर्क में इंटरनेट की स्पीड को 1,000एबीपीएस तक पहुंचाया जा सकेगा। आम जिंदगी में इसका मतलब होगा कि 4जी के मुकाबले 10 से 20 गुना ज्यादा तेज डाटा डाउनलोड स्पीड।

5जी को पांच अलग अलग तकनीकों का संगम भी कहा जा रहा है। इनमें मिलीमीटर वेब्स, स्मॉल सेल, मैसिव माइमो, बीमफॉर्मिंग और फुल डुप्लेक्स शामिल हैं। फिलहाल हमारे स्मार्टफोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज जैसे टीवी या वाई फाई 6 गीगाहर्ट्ज से नीचे की फ्रीक्वेंसी पर चलते हैं।

लेकिन इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले उपकरणों की बढ़ती संख्या के कारण यह फ्रीक्वेंसी जाम हो रही है और धीमी पड़ रही है। इसीलिए अब मिलीमीटर वेब्स के जरिए 30 से 300 गीगाहर्ट्ज के खाली फ्रीक्वेंसी बैंड को इस्तेमाल करने की तैयारी है।

लेकिन वेवलेंथ काफी छोटी होने के कारण मिलीमीटर वेब्स बहुत अच्छे से सफर नहीं कर पाती हैं। ये पेड़ या इमारतों जैसी बाधा को पार नहीं कर पाती हैं। बारिश और पेड़ भी इन तरंगों को सोख लेते हैं। इसीलिए इसके साथ स्मॉल सेल तकनीक को भी मिलाया जा रहा है।

फिलहाल डाटा ट्रांसफर के लिए ऊंचे ऊंचे मोबाइल टावरों का इस्तेमाल किया जाता है। इन टावरों से अगर मिलीमीटर वेब्स भी छोड़ी गईं तो वे बाधाओं से टकरा कर बेकार हो जाएंगी।

इसीलिए अब एक बड़े टावर के आस पास कई छोटे छोटे स्मॉल सेल बेस प्वाइंट लगाने की बात हो रही है। ये बेस प्वाइंट ऊंचे टावर की आवृत्तियों को ट्रांसफॉर्मरों की तरह आगे फैलाने का काम करें।

साभार- डी डब्ल्यू हिन्दी