ग्रीको रोमन थियेटर में कहानियां सुखांत होती हैं और उनमें समाज के लिए एक संदेश भी रहता है. फिल्मी परदे पर भी समाज के लिए ऐसे ही संदेश के साथ सुखांत कहानियां दिखाई जाती हैं. हालांकि इसे दिखाने वाले हकीकत में असल मसलों पर खामोश या पल्ला झाड़ते नजर आते हैं, जिम्मेदारियों से बचते हैं. बजरंगी भाईजान जैसी फिल्म में भारत पाकिस्तान के बीच अमन का संदेश देने वाले सलमान खान भी दोनों देशों के सांस्कृतिक रिश्ते को गति देने के मामले में चुप ही नजर आ रहे हैं.
जबकि भारत और पाकिस्तान में चाहे जितने मतभेद हों, लेकिन सिनेमा वो चीज है जिसे लेकर दोनों देशों की भावनाएं एक जैसी हैं. सिनेमा, यानी बॉलीवुड का हिंदी सिनेमा. पाकिस्तान में बॉलीवुड की फिल्मों को उतना ही पसंद किया जाता है जितना भारत में. और इसकी वजह है साझी संस्कृति. पाकिस्तान में सिनेमा का कारोबार हॉलीवुड और हिंदी फिल्मों पर ही आश्रित है. मगर जम्मू कश्मीर में सीआरपीएफ कैम्प पर आतंकी हमले और फिर बालाकोट में भारतीय वायुसेना की एयरस्ट्राइक के बाद सियासी संबंध इस तरह बेपटरी हुए कि पाकिस्तान में हिंदी फिल्मों की रौनक ही गायब हो गई.
बालाकोट की घटना के बाद भारतीय निर्माताओं ने पाकिस्तान में फ़िल्मों को रिलीज ना करने की घोषणा की थी. जवाब में पाकिस्तान की सरकार ने भी भारतीय फिल्मों के प्रदर्शन पर बैन लगा दिया. हालांकि दोनों ओर से हुई ये प्रगति पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों के प्रशंसकों और कारोबारियों के हित में नहीं रही. बालाकोट के बाद से अब तक पाकिस्तान में कोई फिल्म रिलीज नहीं हुई. जाहिर सी बात है कि फिल्मों पर ये बंदी भारतीय निर्माताओं के हित में भी नहीं है.
पिछले कुछ सालों में संभवत: ये पहली ईद है जब पाकिस्तान में बॉलीवुड की फिल्म रिलीज नहीं हो रही है. जबकि दुनिया के 170 देशों में ईद पर सलमान खान की फिल्म भारत रिलीज हो रही है. भारत की तरह पाकिस्तान में भी सलमान खान का तगड़ा फैन बेस है. अब ईद पर सलमान की फिल्म नहीं आने से पाकिस्तान के दर्शक मायूस हैं. वे सोशल मीडिया पर अपना दुख भी जता रहे हैं. जबकि भारत की कहानी ऐसी थी जिसका एक सिरा पाकिस्तान से जाकर जुड़ता है. वो सिरा जो बंटवारे के आपसी दर्द, प्रेम और भाईचारे का है. उम्मीद थी कि लोकसभा चुनाव खत्म होने और नई सरकार बनने के बाद सिनेमा के स्तर पर भारत और पाकिस्तान के रिश्ते बेहतर होंगे. यह भी उम्मीद थी कि ईद पर पाकिस्तान में भारत के रिलीज की कोशिश की जाती, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
भारत में जो सलमान अपने पिता और बहन के लिए कार्ड बोर्ड लेकर खड़े नजर आते हैं वो आखिर पाकिस्तान में भारत की रिलीज के लिए तख्ती लेकर अटारी पर खड़े क्यों नहीं हैं? सीनियर फिल्म क्रिटिक अजय ब्रह्मात्मज ने कहा कि पहल (फिल्मों के प्रदर्शन पर बैन हटाना) पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को करनी चाहिए. अजय ब्रह्मात्मज ने कहा, “फिलहाल सांस्कृतिक आदान प्रदान एक राजनीतिक मसला बन गया है. हकीकत में मुंबई के फिल्म कलाकारों और कारोबारियों का एक बड़ा हिस्सा चाहता है कि दोनों देशों के बीच फिल्म ट्रेड बना रहे.”
अजय ब्रह्मात्मज के मुताबिक़ “लेकिन देश में जिस तरह का माहौल बना हुआ है कोई कलाकार अपनी ओर से फिलहाल इस तरह की पहल (पाकिस्तान में फिल्मों की रिलीज की कोशिश) नहीं करना चाहेगा. तमाम लोग व्यवस्था की वजह से खामोश हैं. दोनों देशों में इस स्तर पर दोस्ती की बात फिलहाल मुमकिन नहीं है. भविष्य की राजनीति से ये तय होगा कि भारत पाकिस्तान में फिल्मों का संपर्क बना रहेगा या नहीं.”
बालाकोट के बाद से भारत पाकिस्तान के रिश्ते नाजुक मोड़ पर फंसे हैं. सांस्कृतिक आदान प्रदान के लिए ईद पर पाकिस्तान में भारत की रिलीज दोनों देशों के लिए एक बेहतर मौका था. ईद पर भारतीय फिल्मों पर लगे बैन को हटाकर इमरान पहल कर सकते थे. लेकिन ये मौका फिलहाल चला गया.