जानें किस मुस्लिम शख़्स के सामने ज़मीन पर बैठ जाते थे चाचा नेहरु

उर्दू भाषा को पसंद करने वाले और शायरी की दुनिया से ताल्लुक रखने वालों के लिए अल्लामा इकबाल का नाम नया नहीं है। स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे इकबाल से रुबरू हो या न हो, लेकिन इकबाल के शब्द उनकी जिंदगी से शुरुआत से ही गुफ्तगू करने लगते हैं।

उस शख़्स के बारे में कोई अल्फ़ाज़ लिखते हुये हाथ काँप जाएँगे जिस शख़्स के सामने चचा नेहरु ज़मीन पर बैठ जाते थे।

इक़बाल वो शख़्स हैं जिसपर पाँच हज़ार किताबें लिखी जा चुकी हैं और एक हज़ार किताबें दूसरी ज़बानों में भी लिखी जा चुकी हैं। लाखों थीसिस लिखी जा चुकी है। जिनपर शोध के लिये कई यूनिवर्सिटी में अलग डिपार्टमेंट तक है।

‘सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा’ का जिक्र कीजिए या फिर लब पे आती है दुआ बनके तमन्ना मेरी… हर तरफ इकबाल अपने शब्दों से लोगों को बांधते चलते हैं। 9 नवंबर 1877 को सियालकोट (अब पाकिस्तान में )में जन्मे इकबाल की शायरी की ताकत की वजह से ही उन्हें पाकिस्तान का राष्ट्रकवि कहा जाता है।

यूं तो शेरो-शायरी के असल मायने महबूब से इश्क के इकरार और तकरार से है, लेकिन इकबाल इन सभी से बेहद आगे हैं। वो अपने शेरों में सिर्फ माशूका की खूबसूरती, उसकी जुल्फें, उसके यौवन की बात नहीं करते बल्कि उनके शेरों में मजलूमों का दर्द भी नजर आता। इकबाल नारी शक्ति पर भी लिखते हैं और शायरी में नारी को महबूबा की तरह भी संवारते हैं।

इक़बाल की शायरी मस्जिद में इमाम से लेकर सियासत की गलियों में, बुद्धिजीवियों के सम्मेलनों में तो सुबह सुबह स्कूलों में हर जगह हर लम्हा सुनाई देती हैं।