जामा मस्जिद के क़रीब मुतनाज़ा ( विवादित) ढांचा के मसला ( समस्या) को फ़िर्कावाराना रंग देने के ख़िलाफ़ अश्रार को ख़बरदार करते हुए दिल्ली हाइकोर्ट ने आज महकमा ( विभाग) आसारे-ए-क़दीमा ( पुराने स्मार्को के अवशेष) को इलाक़ा में गै़रक़ानूनी तामीरात मुनहदिम (ध्वस्त/ गिराने) करने की इजाज़त दे दी ।
इस के इलावा ये मालूम करने की भी हिदायत दी कि क्या फ़ी अलवा कई मुग़ल दौर की इमारत के आसार पाए जाते हैं । अदालत ने तवक़्क़ो ( उम्मीद) ज़ाहिर की कि हर कोई बेहतर तर्ज़ अमल का मुज़ाहरा करेगा और आरक्योलोजीकल सर्वे आफ़ इंडिया ( ए एस आई ) को अपना काम करने दिया जाएगा ।
कारगुज़ार चीफ़ जस्टिस ए के सीकरी के ज़ेर-ए-क़ियादत (नेतृत्व में) मुकम्मल बंच ने अवाम से ख़ाहिश की कि वो क़ानून अपने हाथ में ना लें और इस मसला ( समस्या) को ग़ैर ज़रूरी फ़िर्कावाराना रंग ना दिया जाए । उन्होंने कहा कि अवाम को अपने तौर पर नतीजा अख़ज़ (ग्रहण) नहीं करना चाहीए जबकि अदालत तमाम पहलुओं पर नज़र रखे हुए है ।
मज़हब के बारे में कहा जाता है कि ये आवाम या जनता के लिए ग़ैरमामूली जज़बाती मुआमला होता है । ये सब को मुत्तहिद (मेल मिलाप) भी करता है और साथ ही समाजी अमन को इस वक़्त मुतास्सिर ( प्रभावित) भी कर सकता है जब मज़हब के नाम पर इंतिहाई मौक़िफ़ ( निश्चय) कर लिया जाय ।
उन्होंने कहा कि समाज के तमाम अफ़राद की ये ज़िम्मेदारी है कि वो इस बात को यक़ीनी बनाईं कि जनता की ज़िंदगी को ख़तरा लाहक़ ना हो और मज़हब के नाम पर वो मुतास्सिर ना होने पायें । अदालत ने अश्रार ( बुरे लोगों / धूर्त) को जिन्होंने अवामी और ख़ानगी ( निजी) इमलाक ( संपत्ती) को नुक़्सान पहुंचाने की कोशिश की और 20जुलाई के हुक्म के बाद इस मुक़ाम के पास फ़िर्कावाराना नौईयत की सूरत-ए-हाल पैदा की ।
इनके ख़िलाफ़ पुलिस को मुक़द्दमा दर्ज करने का हुक्म दिया साथ ही पुलिस को सख़्त चौकसी के ज़रीया अफ़्वाहों का बाज़ार गर्म होने ना दे । बंच ने वाज़िह ( स्पष्ट) तौर पर कहा कि शरपसंद अनासिर ( झगड़ालूओ/ झगड़ा करने वालो) को आज़ादाना ( स्वनंत्रतापूर्वक/ आज़ादी के साथ) घूमने की इजाज़त नहीं मिलनी चाहीए ।
अब वक़्त आ चुका है कि ऐसे ग्रुप्स को उन की ग़लत और ग़ैर ज़िम्मादाराना हरकात पर जवाबदेह बनाया जाए । अदालत ने ए एस आई नई दिल्ली म्यूनसिंपल कौंसल और पुलिस को इलाक़ा में अमन-ओ-फ़िर्कावाराना हम आहंगी बरक़रार रखने की हिदायत दी । अदालत ने कहाकि हमें ये बात ज़हन नशीन रखनी चाहीए कि बाअज़ अश्रार ( बुरे लोगों / धूर्तो) ने दानिस्ता तौर पर अपनी हरकात के ज़रीया एक ऐसा माहौल तैयार करने की कोशिश की जिस से फ़िर्कावाराना हम आहंगी मुतास्सिर हो और अवामी और ख़ानगी इमलाक को नुक़्सान पहुंचे |