जामिया के अल्पसंख्यक भूमिका के संबंध में केंद्र सरकार का शपथपत्र मौलिक अधिकारों का हनन है: मौलाना महमूद मदनी

नई दिल्ली: जमीअत उलेमा ए हिन्द के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया के अल्पसंख्यक भूमिका के संबंध में केंद्र सरकार के शपथपत्र की सख्त विरोध करते हुए उसे संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का हनन क़रार दिया।

मौलना मदनी ने कहा है कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया एतिहासिक तौर से अपने नाम और किरदार से ही अल्पसंख्यकों का संस्था है जो महज़ सरकारी मदद की वजह से नहीं बदल सकता। अलीगढ़ में जामिया मिल्लिया इस्लामिया की बुनियाद हजरत शेख उल हिन्द मोहमूद हसन देवबंदी ने अपने हाथों से रखी थी और शुरुआती दौर में स्वर्गीय डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन सहित वहां के शिक्षक ने अपना खून और पसीना शामिल करके उसकी बुनियादों को मज़बूत किया।

यही वजह है कि आज तक उसका अल्पसंख्यक भूमिका बरकरार है और साल 2011 में केंद्र सरकार ने नेशनल कमीशन फॉर माइनॉरिटी इंस्टीट्यूशन की फैसले को मंज़र करते हुए कानूनी तौर से उक्त हैसियत को स्वीकार किया था।

लिहाज़ा बाद में आने वाली सभी सरकारों की जिम्मेदारी बनती है कि वह इस भूमिका की सुरक्षा करे। मौलाना मदनी ने कहा कि सरकार का रुख सीधे तौर पर संविधान के बुनियादी धारा (2) 30 से टकराता है। यह धारा सरकार को अल्पसंख्यक संस्था को फंड देने में आकांक्षायें रखने से रोकती है।