जामिया के फाउंडर-मेम्बर डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी, ने फूंकी थी आज़ादी के आन्दोलन में जान,

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डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी आज़ादी के मशहूर आन्दोलन का एक गुम हो चुका नाम हैं, एक ऐसा नाम जिन्हें ढूँढने की भी कोशिश नहीं की जा रही. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष रहे अंसारी ने आज़ादी के आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के “फौन्डिंग मेम्बर” रहे अंसारी का जन्म 25 दिसम्बर 1880 को मोहम्मदाबाद, पूर्वी उत्तर प्रदेश में हुआ था. अंसारी का परिवार उनके बचपन ही में हैदराबाद चला गया. उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की पढ़ाई की और बाद में इंग्लैंड चले गए. उनके बारे में कहा जाता है कि वो एक लाजवाब छात्र थे. उन्होंने के लन्दन लॉक हॉस्पिटल और चरिंग क्रॉस हॉस्पिटल में काम किया. सर्जरी में उनकी कामयाबी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि चरिंग क्रॉस होस्पिटल में आज भी उनके सम्मान में एक वार्ड का नाम दिया गया है.

डॉ अंसारी भारत के आज़ादी के आन्दोलन के प्रति जागरूक थे और दिल्ली आते ही उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ही के सदस्य बन गए. 1927 में वो कांग्रेस के अध्यक्ष बने. मुहम्मद अली जिन्ना के अलगाव पसंद रवैय्ये को लेकर इनके मतभेद रहे जिसकी वजह से मुस्लिम लीग से ये अलग हो गए. कांग्रेस पार्टी और महात्मा गाँधी के क़रीबी माने जाने वाले अंसारी ने स्वदेशी और अहिंसा की वकालत की.

बाल्कन युद्ध के दौरान उन्होंने भारत के मेडिकल मिशन जो तुर्की सैनिकों की सहायता के लिए गया था, को लीड किया. 1916 के लखनऊ पैक्ट में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. वो ख़िलाफ़त आन्दोलन के ज़बरदस्त समर्थक थे.

डॉ अंसारी जामिया मिली यूनिवर्सिटी के फाउंडर मेम्बर भी रहे, और डॉ हकीम अजमल ख़ान के इन्तेक़ाल के बाद चांसलर के बतौर भी यूनिवर्सिटी के मक़सद को आगे ले गए.

डॉ अंसारी का इन्तेक़ाल 1936 में हुआ. मसूरी से दिल्ली जाते समय उनको दिल का दौरा पड़ा. उनकी क़ब्र जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी में है.

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