जिंदगी गुजारने के कीमती उसूल

(हकीम मोहम्मद इरफान अल हुसैनी) हजरत अबू जर गफ्फारी (रजि०) बयान करते हैं कि मुझे मेरे महबूब नबी करीम (सल०) ने सात बातों का खास तौर से हुक्म फरमाया (जिस पर हम दिल से आमिल और कारबंद हो)

मसाकीन और गरीबों से मोहब्बत रखने और उनसे करीब रहने का

उन लोगों पर नजर हो जो मुझ से नीचे दर्जे के है (यानी जिसके पास दुनियावी जिंदगी का सामान मुझ से भी कम है) और उनपर नजर न करूं जो मुझ से ऊपर के दर्जे के हैं। (यानी जिनकी दुनियावी जिंदगी का सामान मुझसे ज्यादा है)

मैं अपने कराबतदारों के साथ सिलारहमी करूं और कराबती रिश्तों को जोडूं (यानी उनके साथ वह मामला और सुलूक करता रहूं जो अपने अजीजों और कराबतदारों के साथ करना चाहिए) अगरचे वह मेरे साथ (कराबतदार का मामला न बरतें)

किसी आदमी से कोई चीज न मांगू (यानी अपनी हर हाजत के लिए अल्लाह तआला ही के सामने हाथ फैलाऊं और उसके सिवा किसी और के दरवाजे का सवाली न बनूं)

हर मौके पर हक बात कहूं अगरचे वह लोगों के लिए कड़वी ही क्यों न हो (और उनकी ख्वाहिशात के खिलाफ होने की वजह से उन्हें बुरी लगे)

मैं खुदा की राह में किसी मलामत करने वाले की मलामत से न डरूं (यानी दुनिया वाले अगरचे मुझे बुरा कहें लेकिन मैं वही कहूं और वही करूं जो अल्लाह का हुक्म हो और जिस से अल्लाह राजी हो और किसी के बुरा कहने की हरगिज परवा न करूं)

मैं यह कलमा- (तर्जुमा) नही है कोई दबदबा और न ही कोई ताकत मगर खुदा ही के जरिये कसरत से पढ़ा करूं। क्योंकि यह कलमा उस खजाने से है जो आसमान के नीचे हैं।’

तौजीह- गरीबों, मोहताजों और कमजोरो का हमेशा साथ दीजिए और उनके साथ रहिए। बड़ों के साथ तो हर शख्स चिपकना अपना मामूल बनाए हुए है। अपनी हालत पर हर वक्त सब्र व शुक्र कीजिए। अगर आप को किसी दूसरे की दौलत ज्यादा देखकर बेचैनी और जलन हो रही है तो जिसके पास आप से कम माल है उस पर एक नजर डालकर अपने दिल को तसल्ली दे लीजिए और अल्लाह तआला का शुक्र अदा कीजिए कि दूसरे औरों के मुकाबले में आप मालदार हैं।

जो अजीज आप से कराबतदारी का सुलूक नही करते आप भी बदले में उनसे बेताल्लुकी मत बरतिए बल्कि कराबत दारी की जिम्मेदारी आप तो निभाइए। यकीनन यह काम दिल पर सब्र करके करने का है। मगर नबी करीम (सल०) के इस हुक्म से बहुत मसलेहता और बरकत पोशीदा है।

हर किसी से इंसान मांगता फिरे इसकी मनाही है और इस्लाम मजहब में मांगने का मरकज और देने वाला सिर्फ खुदा ही है। इसकी तालीम दी है। कुछ लोग किसी फर्द या हुकूमत या इदारों या जमाअतों से माल व आबरू के सवाली होते हैं इससे गैरत व आजादी-ए-फिक्र के अमल से महरूम हो जाते हैं और यह बहुत बड़ी बदनसीबी है।

नतीजे में जिल्लत का तो सामना करना पड़ता है हां अपने वह नाते-रिश्तेदारों और बुजुर्ग लोगों से अगर कुछ मांगा जाए तो वह इस अमल तलब से बहुत खुश होंगे और उन्हें देकर खुशी हासिल होगी उनसे कुछ मांगने में कोई हरज नही। बल्कि ऐन सआदत है कि आपस में लेन-देन से मोहब्बत का मौका मिलता है।

हर काम व तरीके में सिर्फ खुदा की खुशनूदी और उसके एहकाम की तकमील का जज्बा पोशीदा रहे। दुनिया वाले क्या कहेंगे इस पर बिल्कुल ध्यान मत दीजिए। इसी में कामयाबी और खुशी हासिल होगी। मलामत करने वाले तो हर हाल में मलामत के लिए जायज व नाजायज बाते तलाश करते रहेंगे उससे आदमी कहां तक बचेगा। हदीस शरीफ के आखिर में एक जिक्र की मुख्तसर इबारत है उसको आप हर वक्त दोहराते रहिए|

————बशुक्रिया: जदीद मरकज़