जिनका रुखे ज़ेबा आफ़ताब-ओ-महताब से ताबिंदा तर

माहे रबीउल अव्वल की आमद के साथ ही चार सौ बहारें छा जाती हैं, प्यार-ओ-मुहब्बत और अज़मत व एहतेराम के जज़बात उमंड़ने लगते हैं। हर तरफ़ ख़ुशीयों का समां होता है, क्योंकि इस माह-ए-मुबारक में ऐसी अज़ीम हस्ती की विलादत हुई, जिनकी वजह से ज़लालत-ओ-गुमराही का मौसम-ए-ख़ज़ाँ ख़त्म हो गया, ज़ुल्म-ओ-सितम और नफ़रत-ओ-अदावत की तारीकीयां काफ़ूर हो गईं।

इस माह-ए-मुबारक में उस ज़ात सतूदा सिफ़ात की जलवागिरी हुई है, जो तख़लीक़ कौन-ओ-मकां के मोअज्जब हैं। जिन्होंने अल्लाह तआला के दीन को मुकम्मल किया और ता क़यामत सारी इंसानियत के लिए तमाम शोबा हाय ज़िंदगी में बेहतरीन नुक़ूश छोड़े।

उनसे वाबस्तगी नजात का बाइस, उनकी मुहब्बत मतलूब-ओ-मक़सूद, उनकी नज़र इनायत कामयाबी-ओ-कामरानी और उनकी रज़ा-ओ-ख़ुशनुदी खुलासा-ए-ज़िंदगी है। जिनकी ज़ाहिरी शक्ल-ओ-सूरत आफ़ताब-ओ-महताब से ताबिंदा तर, जिनके अख़लाक़-ए-आलिया बाद-ए-नसीम से ज़्यादा लतीफ़, उनके शमाइल‍ ओ‍ हुलिया मुबारक की ख़ूबीयों को बयान करना हैता इंसानियत से बालातर है।

चुनांचे हज़रत अली मुर्तज़ा करम उल्लाह वजहु, जिन्हें आग़ोश नबुव्वत में परवान चढ़ने का शर्फ़ हासिल है, जिन्होंने हुज़ूर नबी अकरम स०अ०व० की सुबह-ओ-शाम को क़रीब से देखा, आपके अख़लाक़ हमीदा-ओ-किरदार आलीया और फ़ित्री मुहासिन-ओ-कमालात को बंज़र ग़ाइर देखा और उन्होंने आप के हुलिया मुबारका की ख़ूबीयों को भी बयान किया, लेकिन वो फ़साहत-ओ-बलाग़त और फ़न ख़िताबत में इमतियाज़ी शान रखने के बावजूद अपनी अजुज़ बयानी का इज़हार करते हुए गोया हैं:
अल्लाहू यलमू शाना
वहोवल अलीमो बयाना
यानी अल्लाह तआला ही आप स०अ०व्० की शान-ओ-अज़मत को जानता है और वही आप के बयान से वाक़िफ़ है।

मिर्ज़ा ग़ालिब की नाअत का मशहूर मक़ता है:
ग़ालिब सनाए ख़्वाजा ब यज़्दाँ गुज़ाशतीम
कां ज़ात ए पाक मर्तबा दान मुहम्मद अस्त

तबा बिन हस्सान ए यमन में हमीर बादशाहों में से थे, वो अबद कुलाल के बादशाह थे, उन्होंने अहल यसरिब (अहल मदीना) से जंग की थी। अहल यसरिब दिन में जंग करते और रात में तबा की ज़याफ़त करते। तीन रातें इसी तरह गुज़र गईं तो तबा शर्मिंदा हुए और उन्होंने सुलह कर ली।

बादअज़ां उन को बताया गया कि इस शहर को फ़तह नहीं किया जा सकता, क्योंकि ये नबी आख़िरुज़्ज़मा स०अ०‍व० की फुरोद गाह है, जो क़बीला क़ुरैश से होंगे। तबा ने इस पर चंद अशआर कहे, जिनमें दो अशआर का तर्जुमा शामिल है:

तर्जुमा:। मैंने गवाही दी कि अहमद मुजतबा स०अ०व० ख़ालिक़ ए कायनात अल्लाह अज़्ज़ूजल के रसूल हैं और अगर मेरी इमरान की आमद तक वफ़ा करती तो मैं ज़रूर उनका वज़ीर और हामी होता।

हुज़ूर नबी अकरम स०अ०व० के महबूब-ओ-मुशफ्फिक़ अम मुहतरम अबू तालिब ने भी आप के रुख़‍ ए ज़ेबा, फ़ित्री मुहासिन और आप के अख़लाक़-ए-आलिया का अपने अशआर में ज़िक्र किया जिस का तर्जुमा ये है:

तर्जुमा:। वो ऐसे रौशन-ओ-ताबनाक हैं, जिनके रुख़े ज़ेबा के वसीला से बारिश तलब की जाती है। वो यतीमों की परवरिश करने वाले और बेवाओ की पनाह हैं।
तर्जुमा:। बनी हाशिम के मुफ़लिस आप की पनाह लेते हैं और वो आप के पास रहमत‍ ओ‍ शफ़क्क़त और आली मुरातिब में हैं।
हुज़ूर नबी अकरम स०अ०व० के रुख़े ज़ेबा को जो लम्हा भर के लिए भी देख लेता है, वो हुस्न-ओ-जमाल की ज़ेबाई से मुतास्सिर हो जाता और जो कोई कुछ वक़फ़ा के लिए आप स०अ०व० से गुफ़्तगु करता, वो आप स०अ०व० की शीरीं बयानी का गरवीदा हो जाता और कोई भी कुछ अर्सा आप स०अ०व० की सोहबत बा फैज़ में रहता, वो आप स०अ०व० की सिफ़ात ए हुस्ना और अख़लाक़ हमीदा का असीर हो जाता।

चुनांचे उम्मे माबद आतिका बिंते ख़ालिद एक मुअम्मर मेहमान नवाज़ ख़ातून थीं। वो क़बीला ख़ुज़ाआ से थीं, जिनके पास चंद बकरीयां थीं। वो मुसाफ़िर और भूखे प्यासे गुज़रने वालों की पानी, दूध और खजूर से ज़याफ़त करती थीं। सफ़र हिज्रत में ग़ार ए सूर से मदीना मुनव्वरा के रास्ते में साक़ी कौसर नबी अकरम स०अ०व० का गुज़र इस मुअम्मर ख़ातून के पास से हुआ।

उस वक़्त उनके पास ज़याफ़त के लिए कुछ ना था, जो वो सरापा हुस्न-ओ-जमाल और मुजस्सम नूर स०अ०व० को पेश करतीं। उन्होंने माज़रत पेश की, उनके ख़ेमा में एक कमज़ोर निढाल बकरी थी, जो रेवड़ के साथ चल नहीं सकती थी, इसलिए उसको अलग बांध दिया गया था।

आप स०अ०व० ने फ़रमाया इस बिक्री को लाओ। बकरी हाज़िर की गई तो आप स०अ०व० ने इसके थन पर बिसमिल्लाह कह कर हाथ रखा और एक बर्तन तलब किया। बर्तन दूध से लबरेज़ हो गया, यहां तक कि वो ज़मीन पर गिरने लगा। आपने नोश फ़रमाया, फिर हज़रत अबूबकर सिद्दीक़ रज़ी० और दीगर रफ़क़ाए सफ़र ने सैर होकर पिया।

आप ने दुबारा इस बकरी को दूहा और वो प्याला उम्मे माबद को हवाले करके रवाना हो गए।

कुछ देर बाद उम्मे माबद के शौहर आए, उन्होंने दरयाफ्त किया कि ये दूध कहाँ से आया?। उम्मे माबद ने कहा एक बाबरकत शख़्स की तशरीफ़ आवरी हुई थी, ये दूध इम्ही की फै़ज़रसानी का नतीजा है। शौहर ने दरयाफ्त किया वो कौन थे और उनका हुलिया कैसा था?।

जिस पर उम्मे माबद ने आप स‍०अ०व० का हुलिया मुबारक निहायत पुरकशिश अंदाज़ में बयान किया कि मैंने एक आदमी को देखा, पाकीज़ा रो, रौशन चेहरा, पसंदीदा ख़ू, हमवार शिकम, सर में भरे हुए बाल, साहिब ए जमाल, आँखें स्याह और फ़राग़बाल दराज़ और घने, आवाज़ में पुख़्तगी-ओ-मिठास, गर्दन मौज़ूं, रौशन और चमकते हुए दीदा, सुर्मगीं आँख, बारीक और पैवस्ता अब्रू, स्याह घुंघराले गेसू, जब ख़ामोश रहते तो चेहरा पुरविक़ार होता, जब गुफ़्तगु फ़रमाते तो रौनक-ओ-बहार नज़र आती।

तमाम लोगों में सबसे ज़्यादा हसीन-ओ-जमील, दूर से देखो तो नूर का टुकड़ा, क़रीब से देखो तो हुस्न-ओ-जमाल का आईना, कलाम शीरीं जैसे मोती की लड़ी, क़द ना ऐसा पस्त कि कमतर नज़र आए, ना इतना दराज़ कि मायूब मालूम हो, बल्कि एक शाख़ गुल है, जो शाख़ों के दरमियान हो। उनके साथी ऐसे जो हमेशा उन के गर्द-ओ-पेश रहते, जब वो कुछ कहते तो वो ख़ामोश सुनते। जब हुक्म देते हैं तो तामील के झपटते हैं। मख़दूम-ओ-मुता, ना कोताह सुख़न ना फज़ूलगो।

माह रबी उल अव्वल में ख़ुसूसीयत के साथ हुज़ूर नबी अकरम स०अ०व० की मीलाद की महफ़िल मुनाक़िद होती हैं। जलसे मीलाद-उन्नबी स०अ०व० का बड़ी अक़ीदत‍ ओ‍ एहतेराम और तज़्क-ओ-एहतिशाम से एहतिमाम किया जाता है।

इनमें फ़ज़ाइल-ओ-कमालात और मनाक़िब-ओ-ख़ाइस के साथ नौनहाल बिलख़ुसूस नौजवानों के लिए सीरत तैय्यबा के अहम गोशों को पेश करना चाहीए, जो उनकी अमली ज़िंदगी में कारआमद हो और वो अपनी ज़िंदगी के कारवां को आप स०अ‍०व० के मिसाली नमूना की रौशनी में आगे बढ़ा सके।