जियाउल हक पुलिस की मुलाज़्मत नहीं करना चाहते थे

उन्नाव, 05 मार्च: (एहतेशाम उद्दीन अहमद) ‘सर (जियाउल हक), पुलिस की मुलाज़्मत नहीं करना चाहते थे। इस नौकरी में ईमानदारी से काम करना बहुत मुश्किल है। सेलेक्शन डिप्टी एसपी के ओहदा पर हुआ है तो ज्वाइन करना ही पड़ेगा। इस महकमा को (पुलिस विभाग) को नई तस्वीर देने की कोशिश करूंगा।’

लोक सेवा आयोग से पीपीएस इम्तेहान-2009 का नतीज़ा आने पर ये बातें मरहूम सीओ जियाउल हक ने इलाहाबाद युनिवर्सिटी के मुस्लिम बोर्डिंग हाउस में अपने सीनियर रूम पार्टनर मजीद से कही थीं। हॉस्टल के दिनों को याद करते हुए मजीद बताते हैं कि जियाउल को उनके चचा शमशाद अहमद ने साल 1997 में अपनी जगह रखवाया था। जियाउल हक में आफीसर बनने का जुनून था।

बारह साल के तवील वक्फे में उनकी पढ़ाई-लिखाई, नहाने-खाने, सोने-जागने का रूटीन कभी टूटते नहीं देखा गया। सबसे हंसकर और इज्जत से मिलने की वजह से वह पूरे हास्टल के साथियों में मकबूल थे। हॉस्टल के नीचे ओहदे के लोगो को भी कभी तेज आवाज में न पुकारने की आदत के वजह से जियाउल सभी के बीच गांधीवादी के तौर पर मशहूर थे।

मजीद बताते हैं कि साल 1999 के बाद कई साल तक लोक सेवा आयोग के इम्तेहानो में हॉस्टल का कोई भी तालिब ए इल्म ( Students) पीपीएस नहीं बना था। साल 2009 के इम्तेहा में जियाउल के पीपीएस में मुंतखिब होने पर खूब खुशियां मनाई गई थीं। इतने साल के बाद पीसीएस में प्रॉपर रैंक पाने के वजह से जियाउल को हॉस्टल का हीरो माना जाने लगा था। सेशन लेट होने के वजह से उनके बैच की ट्रेनिंग साल 2010 में शुरू हुई थी। प्रतापगढ़ में उनकी तीसरी पोस्टिंग थी।

मजीद बताते हैं कि इतने शरीफ आफीसर के कत्ल से हॉस्टल का एक‍ एक नौजवान गमजदां और गुस्से में है। अल्लाह जियाउल हक को जन्नत नसीब करे और उनके घर वालों को सब्र दें आमीन।

एक गरीब खानदान से ताल्लुक रखने वाले जियाउल हक ने जिस मेहनत और लगन से वह मुकाम हासिल किया था, मौत से पूरे खानदान को बड़ा सदमा लगा है। सीनियर होने के नाते वह मुझसे अक्सर गाइड लाइन्स लेने आते थे।

सभी मौजुआत ( Topics) पर उनकी पकड़ मुझे भी दंग कर देती थी।

———-‍‍‍बशुक्रिया: अमर उजाला