मुंबई ,०१ फरवरी (पी टी आई) हिंदूस्तान एक सयाहती मुल्क ज़रूर है लेकिन हिंदूस्तानियों की एक बड़ी तादाद ऐसी भी है जिन के लिए हिंदूस्तान में मौजूद तारीख़ी मुक़ामात घर की मुर्ग़ी दाल बराबर होते हैं और वो तफ़रीह के लिए बैरून-ए-मुल्क जाने को काबुल फ़ख़र बात समझते हैं।
अमेरीका, यूरोप, दुबई वग़ैरा लेकिन जुनूबी अफ़्रीक़ा का भी अपना एक मुनफ़रद मुक़ाम है और वहां की हुकूमत को पता है कि सय्याहों की सब से ज़्यादा तादाद हिंदूस्तान से आती है। आई पी एल मैच्स का भी यहां इनइक़ाद हो चुका है, जिस से जुनूबी अफ़्रीक़ा की एहमीयत का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
अब जुनूबी अफ़्रीक़ा भी हिंदूस्तान से ज़्यादा से ज़्यादा सय्याहों की आमद का मुंतज़िर है और इस में 42,85 फ़ीसद इज़ाफ़ा का ख़ाहां है। इस तरह 2014-ए-तक एक लाख हिंदूस्तानियों के जुनूबी अफ़्रीक़ा आने की तवक़्क़ो है। इस मौक़ा पर वज़ीर सयाहत मार थीनस वान शावीक ने पी टी आई को बताया कि 2011में हिंदूस्तान से आने वाले सय्याहों की तादाद 70,000 थी और इस में बतदरीज इज़ाफ़ा होता गया।
जुनूबी अफ़्रीक़ा को एक बेहतरीन तफ़रीही मुल्क और तवील तातीलात गुज़ारने केलिए एक मौज़ू मुक़ाम का दर्जा देते हुए हिंदूस्तानियों की कसीर तादाद यहां आई है और हमें 2014 तक एक लाख सय्याहों के निशाने को पूरा करना है। मज़कूरा वमीं यहां प्रोमोशनल दौरे पर आए हुए हैं और उन का कहना है कि हिंदूस्तानियों की कसीर तादाद जुनूबी अफ़्रीक़ा आई है, जिस से जुनूबी अफ़्रीक़ा के तईं उन की मुहब्बत का इल्म होता है।
गांधी जी ने भी अपनी ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा जुनूबी अफ़्रीक़ा में गुज़ारा। ऐसा कहा जाता है कि अगर महात्मा गांधी जुनूबी अफ़्रीक़ा ना आते तो हिंदूस्तान आज़ाद ना होता। ना उन्हें ट्रेन के फस्ट ( First) क्लास डिब्बा से ढकेला जाता और ना उन के दिल में हिंदूस्तान की आज़ादी की तहरीक जन्म लेती ।
वज़ीर मौसूफ़ ने मुस्कुराते हुए कहा कि हिंदूस्तानियों को इस के लिए जुनूबी अफ़्रीक़ा का शुक्र गुज़ार होना चाहीए। हुकूमत जुनूबी अफ़्रीक़ा ने भी हिंदूस्तानी सय्याहों को राग़िब करने अपने प्रोमोशनल बजट में हर साल दस फ़ीसद का इज़ाफ़ा किया है।