मौक़ूफ़ा आराज़ीयात(जमीन), जायदादें यहां तक कि मसाजिद के तहत दर्ज औक़ाफ़ क़ीमती ज़मीनात लैंड गराबरस का सब से आसान निशाना बने हुए हैं क्यों कि इन लैंड गराबरस को अच्छी तरह मालूम है कि मुस्लमान कुछ देर तक अफ़सोस का इज़हार करते हुए ख़ामोश होजाते हैं जबकि वक़्फ़ बोर्ड को हरकत करना भी गवारा नहीं होता।
अपने हो या ग़ैर बिला लिहाज़ मज़हब-ओ-मिल्लत ओक़ाफ़ी जायदादों के दुश्मन अनासिर (तत्वों) किसी ना किसी शक्ल में ओक़ाफ़ी जायदादों को तबाह-ओ-बर्बाद करते हुए इन का नाम-ओ-निशान मिटाने पर तुले हुए हैं और इस में उन्हें भरपूर कामयाबी भी हासिल हो रही है।
हद तो ये है कि जुमेरात बाज़ार जैसे इलाक़ों में तो मसाजिद की मलगियात का किराया ग़ैर मुस्लिम पहलवान बड़ी बेशरमी और ढिटाई से वसूल कर रहा है उसे रोकने की किसी में हिम्मत नहीं।
क़ारईन! जुमेरात बाज़ार में एक क़दीम मस्जिद ग़ौरी है और इस का वक़्फ़ रिकार्ड भी मौजूद है। मस्जिद के बैरूनी हिस्सा में एक बड़ा सा बोर्ड लगा हुआ है इस पर एक अजीब-ओ-ग़रीब अपील लिखी गई है।
इंतिज़ामी कमेटी की जानिब से इस बोर्ड पर तहरीर करवाई गई अपील में कहा गया है कि इस मस्जिद की कोई आमदनी नहीं है। इमाम-ओ-मोज़न की तनख़्वाह भी नहीं निकलती। बरा-ए -करम दिल खोल कर चंदा दीजिए।
हमें तो इस तरह का बोर्ड अपील पहली बार देखने में आई और हमारी दिलचस्पी भी बढ़ गई कि देखें आख़िर माजरा किया है। हम ने इस बारे में तहक़ीक़ शुरू करदी। पता चला कि मस्जिद के तहत तीन मलगयात हैं और तीनों में ग़ैर मुस्लिम किरायादार हैं।
दो मलगयात वाले मस्जिद को किराया अदा नहीं करते बल्कि एक मुक़ामी ग़ैर मुस्लिम पहलवान को अदा करते हैं जैसे वो वक़्फ़ बोर्ड का कोई आला ओहदेदार हो।
हम ने मस्जिद की इस हालत-ए-ज़ार से मुस्लमानों को वाक़िफ़ करवाने के लिए वक़्फ़ रिकार्ड निकाला और इस रिकार्ड में ये देख कर हमारी हैरत की कोई इंतिहा नहीं रही कि इस मस्जिद के तहत 2602 मुरब्बा गज़ अराज़ी(जमीन) है और मस्जिद तक़रीबन तीन सौ गज़ पर मुहीत है।
मस्जिद ग़ौरी जुमेरात बाज़ार का वक़्फ़ रिकार्ड इस तरह है Hyd-1174 वार्ड नंबर 14 , 2602 मुरब्बा गज़ , गज़्ट नंबर 20/A सीरीयल नंबर 56 मौरर्ख़ा 17-5-1984 सफ़ा नंबर 45
उस वक़्त इस मस्जिद के अतराफ़ 2600 गज़ अराज़ी(जमीन) ख़ाली पड़ी हुई है लेकिन इस पर ग़ैर मुस्लिम क़ाबिज़ होगए हैं। एमसाजिद से दूरी उन्हें आबाद करने में मुजरिमाना ग़फ़लत के लिए मुस्लमान भी जवाबदेह रहेंगे।
वाज़ेह रहे कि सियासत ने मौक़ूफ़ा जायदादों के तहफ़्फ़ुज़, मसाजिद की हिफ़ाज़तऔर ग़ैर आबाद मसाजिद को आबाद करने की जो तहरीक शुरू कर रखी है उसे बड़ी सरगर्मी से वुसअत (व्यापकता)दी जाएगी ताकि मौक़ूफ़ा जायदादों और मसाजिद के दुश्मनों का सुकून-ओ-चैन बर्बाद होजाए।
हमारी इन रिपोर्टस का मक़सद लोगों को ये एहसास दिलाना है कि मसाजिद और मौक़ूफ़ा जायदादों का तहफ़्फ़ुज़ हम सब की ज़िम्मेदारी है। इस ग़ैरमामूली ज़िम्मेदारी से पहलूतिही दरअसल गुनाह है और अज़ाब इलाही को दावत देने के मुतरादिफ़ है।
वैसे सियासत अपनी ज़िम्मेदारी के मुताबिक़ हरवक़त इस तरह के वाक़ियात जायदादों और मसाजिद से मुताल्लिक़ हक़ायक़ को सामने लाता रहेगा। बस हम में सिर्फ एहसास ज़िम्मेदारी पैदा होने की ज़रूरत है