अब्बू ऐमल -l1990 में हैदराबाद में बड़े पैमाने पर जो फ़साद हुआ था, तब हमारी ही ज़ात के कई लोग इस मस्जिद को ढाने आए थे, हम ने इन का डट कर मुक़ाबला किया और उन्हें इस मस्जिद को हाथ तक लगाने नहीं दिया। हम ने उस वक़्त भी इस मस्जिद की हिफ़ाज़त की और आइन्दा भी करते रहेंगे।
हम ये मस्जिद किसी भी सूरत में किसी दूसरे के क़बज़ा में नहीं दे सकते, चाहे वो किसी भी मज़हब का हो, किसी महकमा का हो, वक़्फ़ बोर्ड हो या चाहे वो मुस्लमान ही क्यों ना होँ, हम ख़ुद ऊपर वाले के इस घर की हिफ़ाज़त करेंगे। अगर हम चाहते तो दो घंटे में इस मस्जिद को ज़मीन से बराबर करदेते, लेकिन हम ने ख़ुद अपनी आँखों से देखा है कि हमारे बिलकुल सामने जो आप मकान देख रहे हैं, जो दरअसल यहां मुस्लमानों का क़ब्रिस्तान था, हमारे लाख मना करने पर भी उन लोगों ने क़ुबूर को मिस्मार करके उन पर मकान बना लिया, लेकिन इस तारीख़ से आज तक उन्हें इस घर में ख़ुशी नहीं मिल सकी।
हमेशा परेशानी ही रहती हैं। ये मस्जिद भी ऊपर वाले का घर है हम किसी भी सूरत में इस को इसी हालत पर रखेंगे और अपनी औलाद को भी हम ने इस की ताकीद करदी है कि हर हाल में मस्जिद की हिफ़ाज़त करेंगे। ये गुफ़्तगु है उन बिरादरान की, जिन का मकान पुराने पुल, जुमेरात बाज़ार के मेन रोड पर वाक़ै है, जिस का बलदी नंबर 14-1-502/3 है, इस मकान के बाहर कई मलगियां हैं, लेकिन इस के अंदर एक 400 (चार सौ) साला क़दीम(पुरानी) क़ुतुब शाही मस्जिद है जो लोधा ज़ात के लोगों के क़बज़े में है।
हाल ही में इस मस्जिद की अराज़ी(जमीन) पर उन लोगों ने तीन मंज़िला इमारत तामीर की है, जैसे ही इत्तिला मिली कि इस मकान के अंदर एक क़दीम(पुरानी) मस्जिद मौजूद है तो, अख़बार सियासत के ज़रीया वक़्फ़ बोर्ड को मतला करने और इस मस्जिद को मंज़र-ए-आम पर लाने की कोशिश के तौर पर हम मज़कूरा मकान तक पहुंचे।
जैसे ही हम इस मकान के अंदर दाख़िल हुए कि एक साथ चार भाई हमारे सामने आकर खड़े होगए और तरह तरह से सवालात करने लगे। हम ने उन के मकान में मौजूद तारीख़ी क़ुतुब शाही मस्जिद की तस्वीर लेने के लिए जैसे ही कैमरा सँभाला कि वो चारों फ़ौरन हरकत में आगए और हम से कहने लगे कि किसी भी सूरत में हम आप को तस्वीर लेने नहीं देंगे और बिलआख़िर हम उन के इसरार और दबाव की वजह से तस्वीर लेने से क़ासिर रहे,
लेकिन जब हम मुकम्मल तहक़ीक़ात करके इस मकान से बाहर आए तो इस मकान के मुक़ाबिल एक ऊंचे मकान की छत पर चढ़ कर हम ने इस मकान की तस्वीर ले ली, जिस में ये मस्जिद मौजूद है। हम ने तफ़सीलात से आगही हासिल करने के लिए जब इन बिरादरान से गुफ़्तगु का आग़ाज़ किया तो उन्हों ने बताया कि हमारे दादा सोहन लाल जब हुज़ूर निज़ाम की फ़ौज में सूबेदार थे,
तब ही से हम यहां रहते हैं और हुज़ूर निज़ाम ने ही हमारे दादा को रहने के लिए ये जगह दी थी। इस में क़दीम(पुरानी) 400 साला मस्जिद है। उन्हों ने कहा कि आप देख सकते हैं हम ने इस मस्जिद को कुछ भी नुक़्सान नहीं पहुंचाया और ना पहुंचाएंगे। कई मौक़ों पर हमारे ही लोगों ने कहा कि ये मस्जिद तुम्हारे लिए एक दिन मुश्किल खड़ी करदेगी,
इस लिए उसे ज़मीन को बराबर कर दो तो हम ने सख़्ती से उन की बात का इनकार किया। चंद साल क़ब्ल कुछ मुस्लमान आकर कहने लगे कि मस्जिद के सहन की जगह हमें देदो, तो हम ने उन्हें भी उन के मक़सद में कामयाब नहीं होने दिया और ये मस्जिद हम किसी के भी हवाले करने वाले नहीं। चाहे वक़्फ़ बोर्ड ही क्यों ना आजाए। उन्हों ने हम से कहा कि आप से गुज़ारिश है कि उसे मंज़र-ए-आम पर ना लाएंगे जो जैसा चल रहा है वैसे ही चलने दें।
हम छः भाई, छः बहन हैं और इस मकान के इलावा हमारा कोई सहारा नहीं है। हमारे एक सवाल के जवाब में उन्हों ने बताया कि हमारा ये मकान 400 गज़ अराज़ी(जमीन) पर है और अतापोर में हमारा आटो मोबाईल का कारोबार है। सदर नशीन वक़्फ़ बोर्ड मौलाना ख़ुसरो पाशाह अफ़ज़ल ब्याबानी को जब हम ने मज़कूरा बाला तमाम तफ़ासील सेआगाह किया तो उन्हों ने कहा कि वक़्फ़ बोर्ड बहुत जल्द इस का रिकार्ड निकाल कर अपनी टास्क फ़ोर्स टीम को इस मस्जिद के मुआइना के लिए रवाना करेगा और रिपोर्ट हासिल होने के बाद किसी भी सूरत में मस्जिद को हासिल किया जाएगा।
मज़ीद बताया कि ये क़ुतुब शाही मस्जिद है और तारीख़ी मसाजिद दर्ज वक़्फ़ होती हैं मगर ये वाहिद मस्जिद नहीं है जो ग़ैरों के क़बज़े में है बल्कि हमारी साबिक़ा कई रिपोर्टों में ग़ैरों के क़बज़े में मसाजिद होने के कई इन्किशाफ़ात किए गए। इस के बावजूद वक़्फ़ बोर्ड ने आज तक इन मसाजिद को हासिल करने की पहल तक नहीं की। अब मौलाना ख़ुसरो पाशा का इस मस्जिद के हवाले से वाअदा कि वो उसे ज़रूर हासिल करेंगे कहां तक सच्च साबित होना चाहीए, ये आने वाला वक़्त ही बताएगा। ओक़ाफ़ी जायदादें,
मसाजिद और क़ब्रिस्तानों के तहफ़्फ़ुज़ के हवाले से अख़बार सियासत जो कोशिश कर रहा है और लैंड गराबरस और ग़ैरों के क़बज़े में मौजूद ओक़ाफ़ी जायदादों का जो इन्किशाफ़ रोज़नामा सियासत कर रहा है, दरअसल ये काम वक़्फ़ बोर्ड का था। ऐसी टीम वक़्फ़ बोर्ड में होनी चाहीए थी जो हरवक़त पूरे शहर में पूरी दियानतदारी के साथ गशत करती रहती और ओक़ाफ़ी जायदादों, मसाजिद और क़ब्रिस्तानों पर गहिरी नज़र रखें। बहुत सी ऐसी मौक़ूफ़ा जायदाद हैं,
जिन का वक़्फ़ बोर्ड की गज़्ट में रिकार्ड तो मौजूद है, लेकिन वक़्फ़ बोर्ड के अमला को इस की ख़बर तक नहीं, लेकिन बात वहीं आती है कि अल्लाह जिस से जो काम लेना चाहता है इस से लेता है।
लिहाज़ा किसी भी ज़राए से क्यों ना हो जो चीज़ मंज़र-ए-आम पर आरही है।
वक़्फ़ बोर्ड अगली कार्रवाई करते हुए इसे हासिल करने की जद्द-ओ-जहद करे। मिल्लत-ए-इस्लामीया चियरमैन, अमला और महिकमा वक़्फ़ बोर्ड के हक़ में दुआगो रहेगी जो इंशाअल्लाह दुनिया-ओ-आख़िरत में इन के लिए ज़ख़ीरा होगी और नजात का ज़रीया बनेगी।