साल 2013 के मुकाबले साल 2014 में रियासत में हर तरह के जुर्म बढ़े हैं, जबकि मुजरिमों के खिलाफ पुलिस को मिलनेवाली कामयाबी में कमी दर्ज की गयी है। एक जनवरी से 30 जून 2014 के दरमियान हुई कत्ल, लूट, यरगमल और डकैती जैसे जुर्म साल 2013 की इसी मुद्दत में हुए जुर्म से ज्यादा हैं। दूसरी तरफ इसी मुद्दत में मुजरिमों के खिलाफ पुलिस की तरफ से की गयी कार्रवाई की कामयाबी में भारी कमी दर्ज की गयी है। बात चाहे गिरफ्तारी की हो या असलाह की बरामदगी की, हर सतह पर कमी दर्ज की गयी है। साफ है मुजरिम ज्यादा सरगर्म हुए हैं, जबकि पुलिस उतने ही सुस्त। पुलिस के एक सीनियर अफसर कहते हैं साल 2014 में रियासती पुलिस उस तरह काम नहीं कर रही है, जिस तरह गुजिशता साल काम कर रही थी। अफसर को खदशा है कि पुलिस की तरजीह बदल गयी है। जुर्म कंट्रोल के बजाय पुलिस का जेहन दूसरी तरफ ज्यादा है।
14 साल में हुई 18,752 लोगों का कत्ल
रियासत तशकील के बाद 30 जून 2014 तक झारखंड में 18752 लोगों का कत्ल हो चुकी है। 9588 ख़वातीन के साथ आबरूरेजि की वाकिया हुयी। वहीं लूट और डकैती के 8149 और 5054 वारदात हुए। जुर्म कम नहीं हो रहे हैं। मुजरिमों में डर खत्म हो गया है, क्योंकि उन्हें सजा मिलती ही नहीं है। हमारी पुलिस सजा दिलाने के काबिल नहीं है। तहक़ीक़ात का सतह भी कम है। जितने भी जुर्म होते हैं, उन तमाम में मुजरिमों के खिलाफ चाजर्शीट तक दाखिल नहीं की जाती है। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक झारखंड पुलिस ने महज़ 68.6 फीसद मामलों में ही चाजर्शीट दाखिल की। महज़ 25.1 मामलों में ही अदालत में मुल्ज़िम को सजा मिल पायी। जिन मामलों में मुजरिमों को सजा नहीं मिलती, उन मामलों को पुलिस पूरी तरह भूल जाती है। यही वजह है कि मुजरिमों में डर खत्म होता जा रहा है।
रात में इन अहम सड़कों पर नहीं चलते गाड़ी
रांची-खूंटी-चाईबासा रोड
रांची-खूंटी-सिमडेगा रोड
रांची-गुमला रोड
रांची-कुड़-लोहरदगा रोड
कुड़-लातेहार-पलामू रोड
हजारीबाग-टकमसांडी-चतरा रोड
हजारीबाग-बड़कागांव-चतरा रोड
खलारी-टंडवा-चतरा रोड
गिरिडीह-बगोदर रोड
गिरिडीह-डुमरी-फुसरो रोड