नई दिल्ली: दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल के तौर तरीकों से तो हम सब वाकिफ हैं ही लेकिन कुछ लोगों का मानना है कि दिल्ली का यह मफलर मैन कई बार अपने पब्लिसिटी स्टंट के चक्कर में इतना आगे निकल जाता है कि उसे देश के मान सम्मान की भी चिंता नहीं रहती और वह खुद की पब्लिसिटी को देश के मान सम्मान से भी ऊपर मानता है।
पिछले दिनों हुए ऐसे ही एक वाक़ये को ने देश के एक आम आदमी को इतना परेशान कर दिया कि उसने आम आदमी पार्टी अरविन्द केजरीवाल को सबक सिखाने का एक अनोखा तरीका निकाल लिया। इस उम्मीद से कि शायद उसकी इस हरक़त से शायद केजरीवाल के ज़ेहन में देश के मान सम्मान को लेकर भी कुछ ख़याल आना शुरू हो जाएँ।
यह कोशिश की है देश के विशखापट्नम के रहने वाले एक आर्किटेक्ट सुमित अग्रवाल की जिसने केजरीवाल को महज 364 रूपये का एक डिमांड ड्राफ्ट भेजकर अपने लिए एक जोड़ी जूते लेने के लिए कहा है।
कहानी की शुरुआत यूँ हुई कि 26 जनवरी के मौके पर चीफ गेस्ट बनकर देश पहुंचे फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रान्सियस होलांदे के स्वागत में रखे डिनर के प्रोग्राम में शामिल होने के लिए दिल्ली के सी.एम. अरविंद केजरीवाल को भी न्योता दिया गया था।
न्योते को कबूल कर केजरीवाल राष्ट्र्पति भवन पहुंचे तो सही लेकिन फॉर्मल ड्रेस कोड को न मानते हुए केजरीवाल ने पैरों में शूज पहनने की बजाये सैंडिल पहनना बेहतर समझा; केजरीवाल की यह हरक़त की तरफ जब लोगों का ध्यान गया तो कुछेक लोगों को यह बात पसंद नहीं आई। उन्हीं में से एक थे सुमित अग्रवाल जिन्होंने इस बात पर केजरीवाल की खिंचाई करने की ठानी जिसके लिए अग्रवाल ने एक खुला खत लिखकर केजरीवाल को अपनी बात समझाने की कोशिश की है।
सुमित ने अपने खत में लिखा है:
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पिछले दिनों मुझे एक आर्टिकल के जरिए यह बात पता चली कि आपको फ्रांस के राष्ट्र्पति से मिलने का न्यौता मिला था जिस पर आप राष्ट्र्पति भवन पहुंचे थे, मुझे यह भी पता चला कि देश के एक ऐसे मंच पर जाने पर भी आपने अपने पैरों में जूते पहनने की जरुरत न समझ कर सैंडल पहन कर जाना बेहतर समझा। मुझे इस बात से गहरा धक्का पंहुचा है और दुःख हुआ है कि कैसे देश के सबसे बड़े मंच पर आप सैंडिल पहनकर पहुंचे। आपकी मदद करने के लिए मैंने खुद और अपने दोस्तों की मदद से आपके लिए 364 रुपये इकट्ठे किये हैं जो मैं आपको एक बैंक ड्राफ्ट के जरिये भेज रहा हूँ। ताकि आप अपने लिए एक जोड़ी जूते खरीद सको।
मैं समझता हूँ कि एक ऐसे आदमी के लिए कोई भी रकम जूते खरीदने के लिए काफी होगी जो महीने में 2,10000 (दो लाख दस हज़ार रुपये) महीने की तन्खावह लेने के बावजूद यह दावा करता हो कि उसके पास जूते खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं।
इस खत के जरिये सुमित ने राजनीति के ताने बाने की दिखावे और हकीकत की उस तार को छेड़ा है जिस से देश की राजनीति चलती है।