जेल में एच आई वी से मुतास्सिर होने वाले क़ैदी की रिहाई

ये अनोखे वाक़िया में क़त्ल के जुर्म में सज़ाए उम्र क़ैद काटने वाले क़ैदी ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि उसे फ़ौरी रिहा किया जाये और 75 लाख रुपये का मुआवज़ा भी अदा किया जाये क्योंकि जेल में सज़ा की मियाद के दौरान उसे एच आई वी जैसा मोहलिक मर्ज़ लाहक़ होगया और दीगर इन्फ़ैक्शन ने भी उसे परेशान कर रखा है।

ख़ुद उसकी दाख़िल करदा दर्ख़ास्त के ख़ारिज किए जाने के ख़िलाफ़ उसकी अपील का पंजाब-ओ-हरियाणा हाईकोर्ट में तज़किरा किया गया है। इस बेंच की क़ियादत चीफ़ जस्टिस स्थासी वम ने की थी जिन्होंने 17 दिसम्बर तक इस मुआमला की एक मुनासिब बेंच के रूबरू समाअत को मुल्तवी कर दिया था।

क़ैदी ने अपनी क़ैद को चालेंज करते हुए अपेक्स कोर्ट में दर्ख़ास्त दाख़िल की थी जिसे गुजिश्ता साल अगस्त‌ में पंजाब-ओ-हरियाणा हाईकोर्ट ने रद‌ कर दिया था। अपनी अपील जो क़ैदी ने अपने वकील मनोहर सिंह बख़शी के ज़रिया दाख़िल करवाई थी, ने तफ़सीलात पेश करते हुए कहा था कि 2007 से उसे पंजाब जेल में रखा गया है और क़ैद की मियाद के दौरान उसे एच आई वी और एचसी वी जैसी बिहारियाँ लाहक़ होगईं।

उसने ट्रायल कोर्ट की जानिब से क़त्ल मुआमला में उसे सज़ा देने के फ़ैसला को भी चालेंज किया था। अपनी दर्ख़ास्त में उसने जेल के खराब‌ निज़ाम को मौरिद इल्ज़ाम ठहराया था। उसने कहा था कि इस मुआमला की तहक़ीक़ात करवाई जाये कि उसे जेल में रहते हुए एच आई वी जैसी बीमारी कैसे लाहक़ होगई जबकि वो हम्जिंस परस्त नहीं है और ना ही इसके किसी से जिन्सी ताल्लुक़ात हैं।

उसने ये भी मांग‌ किया कि दीगर क़ैदियों के मुफ़ाद के लिए जेल हुक्काम को रहनुमायाना ख़ुतूत का इजरा करना चाहिए ताकि क़ैद-ओ-बंद की ज़िंदगी गुज़ारने वाले और दीगर ज़ेर तसफिया क़ैदियों की रहनुमाई की जा सके क्योंकि अगर ऐसा नहीं हुआ तो दीगर क़ैदियों की ज़िंदगी को भी ख़तरा लाहक़ होसकता है लिहाज़ा इस सिलसिला को फ़ौरी खत्म‌ करने की ज़रूरत है।

जेल हुक्काम ने उसकी बीवी की जानिब से दाख़िल करदा दर्ख़ास्त पर भी कोई तवज्जो नहीं दी जहां बीवी को जब पता चला कि इसका शौहर एच आई वी से मुतास्सिर है तो उसने मकतूब तहरीर करते हुए जेल हुक्काम से अपने शौहर के बेहतर ईलाज की दर्ख़ास्त की थी।

जेल में उसकी हालत इंतिहाई बदतर थी। अच्छा ईलाज तो दूर की बात है, उसे हमेशा डराया धमकाया जाता था और ग़ैर इंसानी सुलूक रवा रखा जाता था। यही नहीं बल्कि दीगर क़ैदी भी उसे ज़द्द-ओ-कूब किया करते थे। उसने कहा कि फिल्मों में वो ऐसे मुनाज़िर कई बार देख चुका है लेकिन हक़ीक़त में भी ऐसा होता है इस का तजुर्बा उसे पहली बार हुआ।