जो कुछ तुम करते हो अल्लाह ताला इससे बख़ूबी ख़बरदार है

आख़िर तुम्हें क्या हो गया है कि तुम ख़र्च नहीं करते (अपने माल) राह ख़ुदा में, हालाँकि अल्लाह ताला ही आसमानों और ज़मीन का वारिस है। तुम में से कोई बराबरी नहीं कर सकता उनकी, जिन्होंने फ़तह मक्का से पहले (राह ख़ुदा में) माल ख़र्च किया और जंग की, इनका दर्जा बहुत बड़ा है उनसे, जिन्होंने फ़तह मक्का के बाद माल ख़र्च किया और जंग की, (वैसे तो) सब के साथ अल्लाह ने वायदा किया है भलाई का। और अल्लाह ताला जो कुछ तुम करते हो, इससे बख़ूबी ख़बरदार है। (सूरा अलहदीद।१०)

इस आयत में अल्लाह ताला की रज़ा और दीन की सरबुलन्दी के लिए माल ख़र्च करने की तरग़ीब दिलाई जा रही है। दिल खोल कर राह ख़ुदा में अपना माल ख़र्च करो और इस बात की ज़रा परवाह ना करो कि तुम्हारी औलाद का क्या बनेगा। तुम्हारी ज़िंदगी की ज़रूरीयात कैसे पूरी होंगी। तुम्हारा मुआमला अपने रब करीम के साथ है, ज़मीन-ओ-आसमान के सारे खज़ाने इसके दस्त क़ुदरत में हैं, हर चीज़ का मालिक वो है, वो बड़ा ग्यूर है, इसकी गीरत हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करता कि इसकी राह में घर बार लुटाने वाला किसी ग़ैर का दस्त नगर हो।

वो ख़ज़ाना ग़ैब से उसे इस तरह फ़िरावाँ रिज़्क देता है कि देखने वाले दंग रह जाते हैं। फ़तह से मुराद फ़तह मक्का है, बाअज़ ने सुलह हुदैबिया भी मुराद लिया है। फ़तह से पहले हालात बड़े नाज़ुक और मख़दूश थे, हर लहज़ा ये ख़तरा था कि कुफ़्फ़ार का सैलाब आएगा और गुलशन इस्लाम को बहाकर ले जाएगा। इन तशवीशनाक और ग़ैर यक़ीनी हालात में जिन लोगों ने दिल खोल कर अपने माल पेश किए और ज़ौक़-ओ-शौक़ से अपनी जानें क़ुर्बान कीं, उनके पेशे नज़र फ़क़त अल्लाह ताला और इसके रसूल (स्०अ०व्०) की रज़ा थी।

किसी किस्म की माली या सयासी मुनफ़अत का गुमान तक ना था। इसलिए जिन लोगों ने बेबसी के आलम में अपने मालिक को राज़ी करने और महिज़ हक़ की सर बुलन्दी के लिए अपने माल भी ख़र्च किए और जानें भी पेश कीं, बाद में आने वाले उन के बराबर नहीं हो सकते।

इस आयत में इन मुहाजिरीन-ओ-अंसार के मुताल्लिक़ ज़बान क़ुदरत ये ऐलान फ़र्मा रही है कि इन का दर्जा बड़ा ऊंचा है, इन का मुक़ाम बड़ा बुलंद है। हज़रत सिद्दीक़ अकबर, हज़रत फ़ारूक़ ए आज़म, हज़रत उसमान ज़ी नूरैन, हज़रत अली मुर्तज़ा रज़ी अल्लाह ताला अन्हुम की क़ुर्बानियां अपनी नज़ीर नहीं रखतीं। अल्लाह ताला ख़ुद उनकी तौसीफ फ़र्मा रहा है। क़ुरआन उनकी अज़मत की गवाही दे रहा है।

अब जो लोग इन पाक लोगों की अज़मत शान को तस्लीम नहीं करते, बल्कि उलटा उन पर ज़बान तान दराज़ करते हैं, वो ज़रा सोचें और ख़ुद ही बताएं कि इन सहाबा ए इकराम के बारे में अल्लाह ताला का फ़ैसला हक़ है, या उन का फ़ैसला?। यहां पर उलमाए तफ़सीर ने एक बड़ा ईमान अफ़रोज़ वाक़िया लिखा है। हज़रत अबदुल्लाह बिन उमर रज़ी अल्लाह अनंहू फ़रमाते हैं कि मैं बारगाह रिसालत में हाज़िर था। हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ी अल्लाह अन्हुं भी वहां बैठे थे।

आप आबा पहने हुए थे और इस को आगे से बांध रखा था। हज़रत जिब्रईल अलैहि अस्सलाम आए और अर्ज़ क्या या रसूल अल्लाह! ये क्या बात है कि मैं देख रहा हूँ अबू बकर ने ऐसी अबा पहन रखी है, जो सामने कांटों से बख़ीया की हुई है?। हुज़ूर अकरम ( स्०अ०व्०) ने फ़रमाया उन्होंने अपना सारा माल मुझ पर ख़र्च कर दिया है।

हज़रत जिबरईल ने अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह! अल्लाह ताला आप को हुक्म देता है कि आप अल्लाह ताला का सलाम अबू बकर को पहुंचाएं और उनसे पूछें क्या ये इस फक्र-ओ-तंगदस्ती पर ख़ुश हैं या नाराज़?। रसूल अल्लाह (स्०अ०व्०) ने हज़रत सिद्दीक़ अकबर को सलाम पहुंचाया और ये सवाल पूछा।

स्पैकर तस्लीम-ओ-रज़ा ने अर्ज़ किया मैं अपने रब पर कैसे नाराज़ हो सकता हूँ, मैं अपने रब से राज़ी हूँ, में अपने रब से राज़ी हूँ, में अपने रब से राज़ी हूँ। हुज़ूर अकरम ( स०अ०व०) ने फ़रमाया अल्लाह ताला इरशाद फ़रमाता है कि मैं तुझ से राज़ी हूँ, जिस तरह तू मुझसे राज़ी है। ये सुन कर हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़ी अल्लाह अन्हूं रो पड़े। हज़रत जिबरईल अलैहिस्सलाम ने फिर अर्ज़ किया या रसूल अल्लाह! इस ख़ुदा की क़सम, जिस ख़ुदा ने आप को हक़ के साथ माबूस फ़रमाया, तमाम हामेलीन अर्श इसी किस्म की अबाएं पहने हुए हैं और इसी तरह से ख़लाल किए हुए हैं (यानी कांटा लगाए हुए हैं) जिस तरह कि आप के इस यार ने किया है। (क़रतबी-ओ-दीगर कुतुब तफ्सीर)