मुल्क में हर साल एक करोड़ बेरोजगार नौजवानों की तादाद बढ़ती जा रही है। इनके लिए कोई रोजगार नहीं है। दुनिया में इतनी तेजी से वर्क फोर्स या बेरोजगारों की तादाद कहीं नहीं बढ़ रही है। इनके लिए रोजगार की तलाश करना सबसे बड़ी चैलेंज है।
इंस्टीटय़ूट फॉर डेवलपमेंट (आइएचडी) की तरफ से तैयार की गयी इंडिया लेबर एंड इंप्लायमेंट रिपोर्ट 2014 में इसका जिक्र किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड में इस वक़्त 19.5 फीसद नौजवान बेरोजगार हैं। रोजगार देने के मामले में पूरे मुल्क में झारखंड का मुकाम 16 वां है। हिमाचल प्रदेश का मुकाम पहला और बिहार 21 वें मुकाम पर है। मंगल को होटल अशोका में रिपोर्ट जारी की गयी। रिपोर्ट तैयार करने में तीन साल लगे हैं।
रोजगार के मामले में मगरीबी भारत सबसे पासमानदा
रिपोर्ट की अहम बातों की जानकारी देते हुए आइएचडी नयी दिल्ली के डाइरेक्टर प्रो अलख नारायण शर्मा ने प्रेजेंटेशन के जरिये से बताया की रोजगार देने के मामले में मगरीबी भारत सबसे पासमानदा है। मगरीबी भारत के बिहार, ओड़िशा, प बंगाल और झारखंड के साथ-साथ छत्तीसगढ़ की हालत भी खराब है। भारत ने 1980 से छह फीसद से ज़्यादा इक़्तेसादी तरक़्क़ी शरह देखी है। 1990 के बाद हुए बेहतर प्रोग्रामों से तरक़्क़ी शरह में इजाफा हुआ है। भारत को दुनिया की उभरती हुई अहम एकनोमिकल कंडीशन का मुल्क में गिना जाता है। फिर भी यहां रोजगार की हालत बहुत खराब है। रिपोर्ट में कहा गया है कि आबादी के तनासिब में लेबर ताकत का शरह भारत में महज़ 56 फीसद है। दुनिया में यह शरह 64 फीसद है। यहां खातून लेबर ताक़त की हिस्सेदारी बहुत कम है। झारखंड का जिक्र करते हुए प्रो शर्मा ने कहा : झारखंड में सनअति रोजगार कम हैं। बिहार में और भी कम हैं। झारखंड में 55 फीसद खातून बेरोजगार हैं। बिहार में 60 फीसद बेरोजगार हैं। ख़वातीन के लायक रोजगार पैदा करना चैलेंज है।
ज़िराअत शोबे में सबसे ज़्यादा काम करने वाले
प्रो शर्मा ने कहा आज भी काम करने वालों का बड़ा हिस्सा (करीब 49 फीसद) खेती-बारी में लगा है। पर जीडीपी में इनका हिस्सेदारी 14 फीसद है। पैदावारी के शोबे में 13 फीसद वर्कर का जीडीपी में हिस्सेदारी 16 फीसद है। जबकि सर्विस के शोबे में 27 फीसद वर्करों का जीडीपी में हिस्सेदारी 58 फीसद है। यह मशरिकी एशियाई और जुनूबी मशरिकी एशियाई मुल्कों से बहुत कम है। तरक़्क़ी का यह गैर मत्वाजीन ढांचा न सिर्फ एशिया की तेजी से बढ़ती मूआईशत से मुखतलिफ़ है, बल्कि मगरीबी के तरक़्क़ी याफ़्ता मुल्कों की इक़्तेसादी हालात से भी मुखतलिफ़ है।
रिपोर्ट में जिक्र किया गया है कि मजदूर बाजार में मसावत की कमी है और यह मुसलसल बढ़ रही है। सबसे चौंकानीवाली मसावत बाकायदा, कैजुअल, मुंजिम और गैर मुंजिम शोबे में है। औसत तौर से एक कैजुअल वर्कर की दिहाड़ी गांवों में 138 रुपये थी। साल 2011-12 में शहरों में यह 173 रुपये थी। इस साल बा कायदा वर्करों की दिहाड़ी गांवों में 298 रुपये और शहरों में 445 रुपये की थी। कैजुअल मुलाज़िमीन की आमदनी पब्लिक सेक्टर के कर्मचारियों की तनख्वाह के सात फीसद से भी कम है। दूसरी तरफ ज़िराअत और गैर ज़िराअत के शोबे के वर्करों की कमाई में फासला बढ़ कर 1:6 हो गया है। लेबर मार्केट में तौसिह लेती अदम मसावत संगीन होती जा रही हैं। प्रो शर्मा ने कहा ज़िराअत शोबे में काम करनेवालों के मुक़ाबले में फायनेंशियल सेक्टर में काम करनेवाले 25 गुना ज्यादा कमाते हैं। यह भारी गैप है, जिसे मिटाने की सख्त जरूरत है।