रांची : राज्य की 72 खदानों से पिछले दो वर्षों से उत्पादन बंद है. इनमें काम करनेवाले दो लाख से अधिक मजदूरों के सामने भुखमरी की स्थिति आ गयी है. खान संचालक परेशान हैं. सबसे अधिक समस्या चाईबासा क्षेत्र में है. इस इलाके में आयरन ओर की 22 खदानों में दो साल से उत्पादन नहीं हो रहा है. ये सभी खदान निजी कंपनियों की हैं. कोयले की चार, बॉक्साइट की सात और लाइम स्टोन की 34 खदानों में भी उत्पादन ठप है. कोयले की खदान को छोड़ कर अन्य सभी लीज नवीकरण की वजह से बंद हैं. वहीं कोल ब्लॉक की चार खदान एक अप्रैल 2015 के पूर्व चालू थी. पर नीलामी के बाद से इनमें उत्पादन नहीं हो रहा है. अन्य छोटी-मोटी करीब आधे दर्जन खदानों भी बंद हैं, जिनमें जेएसएमडीसी की 10 शामिल हैं. सरकार इन सभी खदानों को चालू करने की बात कहती है, पर यह हर बार प्रक्रियाओं के पेच में फंस जाता है.
22 लौह अयस्क खदानों के मजदूर चार सितंबर 2014 से बेरोजगार हैं. अप्रैल 2015 से कोल ब्लॉक में कार्यरत मजदूर भी बेकार बैठे हैं. मजदूरों के अलावा डंपर चालक और खदानों के आसपास छोटी दुकानें लगानेवालों के सामने भी रोजी-रोटी की समस्या आ गयी है. एक खदान से औसतन दो हजार से लेकर अधिकतम 15 हजार लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी है. इनके सामने असमंजस की स्थिति है. एक अनुमान के अनुसार, इन सारी खदानों से दो लाख से अधिक मजदूरों के घरों का चूल्हा जलता था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सितंबर 2014 से लौह अयस्क खदानों का लीज नवीकरण लंबित है. इसके बाद कई बार कमेटी बनी. लीज रद्द किये गये. मामला कोर्ट में गया. कुछ कंपनियों के पक्ष में फैसला भी आया. पर अब तक खदान चालू नहीं हो सकी. दूसरी ओर ओड़िशा में सारी खदान लगभग चालू होने की स्थिति में आ गयी हैं. वहां सुप्रीम कोर्ट के कॉमन कॉज का आदेश लागू हो गया है. पर झारखंड में अभी तक इसकी समीक्षा ही चल रही है. क्लीयरेंस के इंतजार में कोल ब्लॉक अप्रैल 2015 से बंद पड़े हैं
एक अप्रैल 2015 से पहले राज्य के चार कोल ब्लॉक से उत्पादन हो रहा था. एक कोल ब्लॉक से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पांच से सात हजार लोग जुड़े थे. पर एक अप्रैल 2015 से सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कोल ब्लॉक के आवंटन रद्द कर दिये गये थे. इससे इनमें उत्पादन रुक गया. झारखंड में कठोतिया, पचुवारा सेंट्रल, पचुवारा नॉर्थ और परबतपुर कोल ब्लॉक इससे प्रभावित हुए. इसके बाद फिर से इन कोल ब्लॉक की नीलामी की गयी. सरकार की ओर से कहा गया था कि नीलामी के तत्काल बाद खदानें खुल जायेंगी. पर अब तक किसी ने किसी क्लीयरेंस के अभाव में ये खुल नहीं सकी. कहीं जंगल -झाड़ निकल गये, तो कहीं जमीन के कागजात सही नहीं हैं. इस कारण लीज की प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है. इन चारों खदानों से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से 40 हजार मजदूर जुड़े थे. हालत यह है कि सरकार के लाख दावों के बावजूद पिछले डेढ़ वर्ष में बंद कोल ब्लॉक से दोबारा उत्पादन आरंभ नहीं हो सका. यही स्थिति बॉक्साइट, लाइम स्टोन जैसी खदानों की है. पर्यावरण स्वीकृति को लेकर आवेदन अब तक लंबित हैं.