झारखण्ड सरकार अडानी को 1700 एकड़ जमीन देगी, विरोध शुरू

रांची : झारखंड के गोड्डा जिले के अंतर्गत जिला मुख्यालय से कुछ ही दूरी पर मोतिया गांव के समीप बिजली उत्पादन के लिए एक पावर प्लांट प्रस्तावित है। यह प्लांट प्रधानमंत्री के चहेते उद्योगपति गौतम अडाणी की कंपनी का है। 1600 मेगावाट प्रतिदिन बिजली उत्पादन की क्षमता वाले इस प्लांट को राज्य की वर्तमान बीजेपी सरकार ने मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टेंडिंग (एमओयू) पर हस्ताक्षर कर मंजूरी दे दी है। प्लांट लगाये जाने वाले क्षेत्र की जनता से राय-मशवरा करना भी राज्य सरकार ने जरूरी नहीं समझा।

इस पावर प्लांट के लिए मोतिय गांव के आस-पास की 14 मौज़ा के किसानों की 1700 एकड़ बहुफ़सली खेती की जमीन को चिन्हित किया गया है। इस परियोजना से मोतिया, सोनडीहा, पटवा, पुरबेडीह, रमनिया, पेटनी, कदुआ टीकर, गंगटा, नयाबाद, बसंतपुर, देवन्धा, गुमा, परासी एवं देवीनगर सहित दर्जनों गांव के लगभग 30 हजार लोग पूर्णतः विस्थापित होंगे तथा लगभग 1.5 लाख लोग प्रभावित होंगे। इस परियोजना में जिनकी जमीन जायेगी, कुछ मुआवजे की कीमत पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी की अपने बाप-दादा की जायदाद हमेशा के लिए खो देंगे। साथ ही इस जमीन में खेती करने वाले किसान मजदूर भारी तादाद में बेकारी के शिकार होंगे और पशुओं के चारा के लिए भी पशुपालकों को जूझना पड़ेगा।

उक्त परियोजना से होने वाली अनुमानित क्षति-

कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन – 48000 टन (प्रतिदिन)
छाई –राख़ (एश) का निष्काषण – 20500 टन (प्रतिदिन)
अन्य जहरीली- स्वास्थ्य के लिये हानिकारक गैसों का उत्सर्जन – 1100 टन (प्रतिदिन)
ऑक्सीजन का क्षरण – 51200 टन (प्रतिदिन) – एक मेगावाट बिजली उत्पादन पर 32 टन ऑक्सीज़न का क्षरण होता है.
जल का दोहन – 16 करोड़ लीटर (प्रतिदिन) 10 करोड़ लीटर ‘चीर’ नदी से और बाक़ी भूमिगत जल
उपजाऊ जमीन – 1700 एकड़
खाद्यान्न उत्पादन की क्षति – सालाना 25 हजार क्विंटल धान एवं 10 हजार क्विंटल – गेहूँ, दलहन, तिलहन आदि.
कोयला खपत- 20 हजार टन प्रतिदिन (जीतपुर कोलब्लॉक से)
तापमान वृद्धि- 2-30 C

इसके साथ ही कोई मुगालते में न रहे कि इससे स्थानीय लोगों को बिजली मिल जाएगी और उनका विकास हो जाएगा! परियोजना से उत्पादित बिजली बांग्लादेश को बेची जायेगी, जिसका लाभांश अडाणी की झोली में जाएगा। एक अनुमान के मुताबिक इस परियोजना से सारे खर्चे काटकर लगभग 1682 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष मुनाफा होगा, जो अडाणी के खाते में जाएगा।

यानी हमारी हर एक एकड़ जमीन पर अडाणी एक करोड़ रुपये हर साल लूटेगा! परियोजना लगने वाले अन्य इलाकों की तरह यहाँ की जनता के हिस्से आयेगा राख़, प्रदूषण, खतरनाक बीमारी। पीढ़ी-दर-पीढ़ी की जनता की जमीन एक झटके में अडाणी के खाते में चला जाएगा, जहां वे अडाणी की इजाजत के बगैर घुस भी नहीं पाएंगे! जमीन के मुआवजे के तौर पर मिले कुछ रुपये और मुट्ठी भर लोगों को गार्ड-दरबान की नौकरी के जूठन का लालच देकर हमारी बहुफ़सली-उपजाऊ जमीन सदा-सदा के लिए हड़प ली जायेगी।

यहाँ ज़्यादातर नौकरियां तो बाहर के उच्च तकनीकी विशेषज्ञों को ही मिलेगी, बाक़ी स्थानीय लोगों के हिस्से तो जूठन ही आयेगा! परियोजना के लिए होने वाले अंधाधुंध पानी के उपयोग से भूजल स्तर नीचे चला जाएगा, जिससे आस-पास का जनजीवन और खेती-किसानी बुरी तरह प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगा।

अडाणी की जेबें भरेगी और हम ग्रामवासी किसान-मजदूर परिणाम भुगतेंगे! देश के जिन क्षेत्रों में भी इस किस्म का भारी-भरकम पावर प्लांट लगा है, वहाँ की स्थानीय जनता आज खून के आँसू रो रही है और कंपनियां और उनके अफसर-ठेकेदारों की तिजोरी भरती जा रही है।

क्या उसे हम यहाँ भी दोहराने देंगे! क्या मुनाफे के हवसी इन भेड़ियों को हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को सुनहरा भविष्य देने के बजाय उसकी कब्र खोदने की छूट देंगे! नहीं, कतई नहीं! हम लड़ेंगे – अपनी धरती माता के लिए ; अपनी इस अचल उपजाऊ संपत्ति के लिए ; आने वाली पीढ़ियों के लिए! हमारे लिए जमीन पीढ़ी-दर-पीढ़ी के जीवन और जीविका की गारंटी है। सिंगूर-नंदीग्राम के किसानों की तरह हम लड़ेंगे और इन लूटेरों के पाँव अपनी जमीन पर नहीं पड़ने देंगे! हमारे पास लड़ने के अलावा और कोई रास्ता भी तो नहीं है! आइये, इसषड्यंत्र का सब मिलकर पर्दाफाश करें!