झूट की बुराई

(मौलाना रिजवान अहमद कादरी) हजरत सफवान बिन सलीम (रजि0) से रिवायत है कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) से किसी ने अर्ज किया – ‘क्या मोमिन बुजदिल हो सकता है?’ आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया – ‘हां।’ फिर अर्ज किया – ‘क्या मोमिन बखील हो सकता है?’ आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया – ‘हां’ फिर अर्ज किया गया -‘क्या मोमिन झूटा हो सकता है?’ आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया-‘नहीं।’

झूट के मायनी गलत बयानी के है और यह निहायत ही बुरा फेअल है जिसमें यह बुरी आदत पाई जाती है। वह अल्लाह और इंसानों के नजदीक बहुत बुरा है और उसका एतबार नहीं किया जा सकता। कुरआन व हदीस में इसकी बहुत बुराई आई है। अल्लाह तआला का फरमान है-‘बेशक अल्लाह तआला उस शख्स को जो झूटा और नाशुक्रा है हिदायत नहीं देता है।’ (जमर-3)

ऊपर दर्ज हदीस से मालूम हुआ कि ईमान और झूट देा बिल्कुल अलग-अलग चीजें हैं और दोनो का एक साथ जमा हो जाना नामुमकिन है। इसकी ताईद इस हदीस से भी होती है कि नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया किसी के दिल में ईमान व कुफ्र इकट्ठा जमा नहीं हो सकते। कुफ्र है तो ईमान नहीं और ईमान है तो कुफ्र नहीं। और झूट और सच भी इकट्ठा जमा नहीं हो सकते और खयानत व अमानत भी इकट्ठा नहीं हो सकते। (अहमद), एक हदीस में यूं आता है कि एक शख्स नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) की खिदमत में हाजिर हुआ और अर्ज किया या रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम)! जन्नत में ले जाने वाला काम क्या है? आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया सच बोलना जब बंदा सच बोलता है तो नेकी के काम करता है और जो नेकी के काम करता है वह ईमान से भरपूर हो जाता है। और जो ईमान से भरपूर हो जाता है वह जन्नत में दाखिल हुआ।

उस आदमी ने फिर पूछा कि या रसूल (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम)! दोजख में ले जाने वाला काम क्या है? आप (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया झूट बोलना, जब बंदा झूट बोलेगा तो गुनाह के काम करेगा और जब गुनाह के काम करेगा तो कुफ्र करेगा और जो कुफ्र करेगा दोजख में जाएगा। (मसनद अहमद) इस हदीस से मालूम हुआ कि झूट इंसान को कुक्र तक पहुंचा देता है जिससे ज्यादा बुरी कोई दूसरी चीज नहीं और जिसके लिए निजात का कोई दरवाजा नहीं है।

झूट की कई शक्लें हैं उनमें से एक वह जो खुशगप्पी और मजाक में बोला जाता है। बजाहिर इससे किसी को नुकसान नहीं पहुंचता लेकिन इस्लाम ने इससे भी रोका है नबी करीम (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम) ने फरमाया है कि उस शख्स के लिए दर्दनाक अजाब है जो महज लोगों को हंसाने के लिए झूट बोलता है। (अबू दाऊद) झूट की एक सूरत यह होती है कि छोटे बच्चे को बहलाने के लिए वाल्दैन उनसे झूटे वादे कर लेते हैं और समझते हैं कि वह बच्चा उन वादों को थोड़ी देर में भूल जाएगा और अक्सर होता भी यही है लेकिन इस्लाम ने इस झूट की भी इजाजत नहीं दी है। वरना बच्चे के दिल से झूट की बुराई निकल जाएगी।

आज हमारे दिलों से इस घिनौने काम की बुराई बिल्कुल निकल गई है। हर तरफ झूट का दौर दौरा है। आज का अक्लमंद वह है जो झूट बोले और सब से बेवकूफ वह जो सच की शमा रौशन रखे हुए है। आज बच्चों को घरों में झूट की मश्क कराई जाती है। अब्बा खुद घर में बैठे हुए हैं और कोई फोन आ जाए या कोई वाकिफ घर पर आ जाए तो एक मासूम बच्चे से कहा जाता है कि मना कर दो कि अब्बा नहीं है।

यह बच्चा जब बड़ा होकर यही हथियार वाल्दैन पर आजमाए तो फिर रोना किस बात का और शिकवा और शिकायत का क्या जवाज रह जाता है? जो बोया जाता है वही काटा भी जाता है। बाप बेटे को दुकान पर बिठाता है तो साथ ही पहले सबक के तौर पर झूट की मश्क कराता है ताकि बेटा खरीददार को द्दोका देने में गलती न करे फिर जब यह दुकानदार खरीददार बन कर धोके खाए तो उस पर नाराज होना और बुरा भला कहना किस तरह सही होगा।

———बशुक्रिया: जदीद मरकज़