हैदराबाद 19 जुलाई : अहादीसे मुबारका से मालूम होता है कि क़ुरआन मजीद का पढ़ना हर मुसलमान के लिये ज़रूरी है और इस किताबे मुबीन का एहतिराम हर मुसलमान पर फ़र्ज़ ऐन है । लेकिन बाअज़ मर्तबा ऐसे मनाज़िर हमारी नज़रों के सामने आजाते हैं जिस से सख़्त कलबी तकलीफ़ होती है।
अल्हम्दुलिल्ला शहर हैदराबाद को हिंदूस्तान में मुसलमानों की अज़मत उन की शान-ओ-शौकत और रोब-ओ-दबदबा का मर्कज़ कहा जाता है । लेकिन अफ़सोस कि यहां मदफ़न औराक-ए-मुक़द्दसा का कोई इंतिज़ाम नहीं है जिस के नतीजा में लोग क़ुरआन मजीद और पारों के मुक़द्दस-ओ-मुतबर्रिक औराक़ जो किसी वजह से बोसीदा होजाते हैं उन्हें बड़ी बेदर्दी से बाहर किसी कोने में रख देते हैं।
उन के ख़्याल में इस तरह वो अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा कर लेते हैं लेकिन तेज़ हवाएं चलती हैं तो ये औराक़ रास्तों में आजाते हैं जिस से उन की बेहुर्मती होती है । आसिफ़ साबह नवाब मीर उसमान अली ख़ां बहादुर के दौर में मस्जिद टोली के बिलकुल करीब औराक-ए-मुक़द्दसा के लिये ख़ुसूसी तौर पर मदफ़न तामीर करवाया गया था जो आज भी वहां क़ायम है.
तक़रीबन सौ गज़ अराज़ी पर मुहीत औराक-ए-मुक़द्दसा का ये मदफ़न फ़िलवक़्त मुकम्मल तौर पर भर चुका है । हम को जैसे ही इत्तिला मिली कि क़िला गोलकुंडा जाने वाले रास्ते में कारवाँ के करीब और तारीख़ी मस्जिद टोली के पास औराक-ए-मुक़द्दसा का मदफ़न वाक़ै है तो हम फ़ौरी वहां पहुंच गए ।
पता चला कि इस मदफ़न की निगरानी मस्जिद टोली की इंतिज़ामी कमेटी करती है हम ने कमेटी के एक ज़िम्मेदार शख़्स से बात की । उन्हों ने बताया कि लबे सड़क वाक़ै इस मकान नुमा मदफ़न दरअसल ऊंची दीवारों का एक अहाता है ।
उन्हों ने बताया कि चूँकि रमज़ान उल-मुबारक में मसाजिद की साफ़ सफ़ाई की जाती है । इसे में काबिले इत्तिलाफ़ औराक-ए-मुक़द्दसा की बेहुर्मती ना होने पाए इस मक़सद से उन्हें मदफ़न में रख दिया जाता है ।
बाज़ाबता इस मदफ़न पर एक बोर्ड भी आवेज़ां किया गया है और औराक़ रखने के लिये एक सबज़ दरवाज़ा भी नसब किया गया है ताकि लोग औराक़ को ले जाते हुए लाइलमी के नतीजा में ऊपर से अंदर ना फेंकें ।
बल्कि बसद एहतिराम दरवाज़ा से दाख़िल हो कर उन्हें पहले से मौजूद औराक़ में मिलादें । ज़रूरत इस बात की है कि इस तरह के मदफ़न औराक-ए-मुक़द्दसा शहर के मुख़्तलिफ़ हिस्सों ख़ासकर गैर आबाद मसाजिद की आराज़ीयात पर तामीर किए जाएं ।
टोली मस्जिद को हेरिटेज इमारत का भी दर्जा दिया गया है । लेकिन मस्जिद की मौजूदा हालत देख कर एसा लगता है कि महिकमा आसार क़दीमा इस मस्जिद से ग़फ़लत बरत रहा है ।।