नई दिल्ली : शुक्रवार को भारतीय मुस्लिम महिला आन्दोलन(भमुमअ) ने “ट्रिपल तलाक़” पे प्रतिबन्ध लगाने की मांग की , समूह ने कहा कि तलाक़ का ये तरीक़ा ग़ैर इस्लामिक है और कई मुस्लिम देशों में इस पर पहले ही प्रतिबन्ध लगा दिया गया है
“कुरान मुसलमान औरतों को अधिकार देता है और “ट्रिपल तलाक़” को ग़लत क़रार देता है ” समूह ने अपने नौवें वार्षिक अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित करते हुए ये बात कही .
“फिर भी, ये बुरी प्रथा भारत में प्रचलित है , कई मुस्लिम देशों की तरह यहाँ भी इस पर प्रतिबन्ध लगना चाहिए ,”
साथ ही साथ , इस सम्मलेन में यूनिफार्म सिविल कोड के विचार को पूर्णतया ख़ारिज किया गया और सरकार को मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार करने पर विचार करने को कहा
सह-संस्थापक नूरजहाँ साफ़िया नियाज़ ने भमुमअ के हवाले से ये कहा, साथ ही साथ उन्होंने कुरान के न्याय और बराबरी के सिद्धांतों को अपनाते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ को सूचीबद्ध करने की बात भी कही .
एक और सह-संस्थापक ज़ाकिया सोमन ने यूनिफार्म सिविल कोड की खामियां गिनाते हुए बताया कि किस तरह ये मुस्लिम महिलाओं की सभी न्यायिक समस्याओं का हल नहीं है.
उन्होंने कहा कि सिर्फ़ मुस्लिम पर्सनल लॉ में सुधार ला कर मुस्लिम महिलाओं की दशा में सुधार किया जा सकता है जिसके द्वारा शादी की उम्र, तलाक़ और बहु विवाह् पे रोक लगाई जा सके.
“पैनल ने इस बात पर अपनी सहमती ज़ाहिर की कि किस तरह से समाज के पित्त्रात्मक तत्वों ने किसी भी सुधार को ज़्यादा समय तक आगे बढ़ने नहीं दिया और इसे बदलना ही चाहिए”
इस सम्मलेन में तक़रीबन 500 महिलाओं तथा पुरुषों ने भाग लिया जो कि कई राज्यों से यहाँ आये थे .
इस मौक़े पर, एक रिपोर्ट जिसका शीर्षक “और नहीं , तलाक़-तलाक़-तलाक़ : मुस्लिम औरतें इस ग़ैर इस्लामिक प्रथा के खिलाफ़” को प्रकाशित किया गया
नियाज़ और सोमन द्वारा लिखित इस रिपोर्ट में मुसलमान औरतों के 117 मुआमलों का अध्ययन किया गया है जो कि “ट्रिपल तलाक़” की शिकार रही हैं .
अध्ययन में शामिल मुआमले महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, तमिल नाडू, ओधिसा, पश्चिम बंगा तथा कर्नाटक से लिए गए थे .
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक कमीशन के पूर्व अध्यक्ष ताहिर महमूद ने इस रिपोर्ट की प्रस्तावना में कहा कि ये रिपोर्ट एक डरावनी कहानी की तरह है “और ज़ाहिर करती है कि किस तरह से तलाक़ पर पवित्र इस्लामिक लॉ का समाज ने खतरनाक दुरूपयोग किया है “