डबलस ग्रांड सलाम ट्रॉफ़ी जीतना मेरा मक़सद : रोहन बोपन्ना

हिंदुस्तानी टेनिस स्टार रोहन बोपन्ना ने इस बात पर इत्मॆनान का इज़हार किया है कि टेनिस के सफ़र में उन्होंने जो क़ुर्बानियां दी हैं उन का सिला मिलने लगा है उनका वो आलमी रैंकिंग में डबलस में तीसरे नंबर पर पहूंच गए हैं। बोपन्ना ने कहा कि वो आलमी सतह पर अव्वल मुक़ाम हासिल करना और अपनी पहला ग्रांड सलाम ट्रॉफ़ी जीतना चाहते हैं।

बोपन्ना के कैरियर में गुजिशता दो साल में ज़बरदस्त बेहतरी आई है और डबलस ज़मुरा में उन्होंने अच्छी कामयाबियां हासिल की हैं। उन्होंने अपने कैरियर में जुमला आठ ख़िताब जीते हैं जिन में छः गुजिशता तीन साल के दौरान जीते गए हैं। उनके लिए 2012 का सीज़न शानदार रहा जबकि उन्होंने छः फाइनल्स में पहुंचा हासिल की और अपने साथी महेश भूपति के साथ दो ख़िताब जीते। उन्होंने 2011 में पाकिस्तान के आसाम उल-हक़ कुरैशी के साथ तीन फाइनल्स में पहुंच हासिल की और तमाम में कामयाबियां हासिल कीं।

बोपन्ना ने पी टी आई को एक इंटरव्यू देते हुए कहा कि टेनिस कैरियर में उन की कामयाबी में डिसीपिलिन ने अहम रोल अदा किया है। उन्होंने हमेशा कोशिश की है कि अपने खेल को दूसरी हर शए पर तरजीह दें। बाज़ मर्तबा उन्होंने खेल के लिए दोस्तों और ख़ानदान को भी पीछे छोड़ दिया था। टेनिस का ये सफ़र उनके लिए आसान नहीं रहा था ताहम जो कुछ भी क़ुर्बानियां उन्हों ने दी हैं उनके समरात अब मिल रहे हैं।

उन्होंने कहा कि जब कभी आप किसी खेल में कामयाबी हासिल करना चाहते हैं तो आप को क़ुर्बानियां देनी पड़ती हैं। बोपन्ना ने विंबलडन के सेमीफाइनल तक पहुँच हासिल की थी और उन की ताक़तवर सरवेस की वजह से उन्हें बोफोर्स कहा जाने लगा है । उन्हॊने गुजिशता हफ़्ते के शुरू में तीसरी रैंकिंग हासिल करली है ताहम उन का कहना है कि वो आलमी नंबर एक मौक़िफ़ हासिल करना चाहते हैं और पहली ग्रांड सलाम ट्रॉफ़ी जीतना चाहते हैं।

उन्होंने कहा कि वो ब्रायन भाईयों को पीछे छोड़ने की कोशिश करेंगे। वो नंबर एक मुक़ाम हासिल करने के लिए हर मुम्किन जद्द-ओ-जहद करेंगे। उनके लिए ये रैंकिंग अहमियत की हामिलहै और इससे आगे बढ़ना एक ख़ाब होगा। उन्होंने कहा कि फ़िलहाल वो अपनी सारी तवज्जो सिर्फ़ ग्रांड सलाम ख़िताब हासिल करने पर मर्कूज़ कर रहे हैं।

जब वो यहां तक पहूंचे हैं तो अपने मुल्क के लिए ग्रांड सलाम का ख़िताब जीतने की भी हरमुम्किन जद्द-ओ-जहद करेंगे। बोपन्ना ने इस सवाल पर कि आया 33 साल की उम्र में उन्हें मिलने वाली कामयाबियां क़दरेताख़ीर से नहीं हैं ? । उन्होंने कहा कि कभी कामयाबी ना मिलने से बेहतर है कि ताख़ीर ही से सहीह मिल जाये ।

उन्होंने कहा कि एक अथेलेट की हैसियत में सिर्फ़ जीतना ही कामयाबी नहीं है । ये सख़्त मेहनत करने का नतीजा होता है और उन्होंने हमेशा अच्छी जद्द-ओ-जहद की है और हर मैच को पूरी तवज्जो से खेला है। बोपन्ना पर हालाँकि हिंदुस्तान में लिएंडर पेस और महेश भूपति को बढ़त हासिल रही थी लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और ख़ामोशी से अपना सफ़र जारी रखा जिस पर अब उन्हें कामयाबियां मिल रही हैं।