मुंबई, १३ नवंबर (एजेंसी) दुनिया में सैंकड़ों अफ़राद रोज़ाना सिर्फ़ डायबिटीज़ के मर्ज़ में मुबतला होकर फ़ौत हो जाते हैं। क्या ये फ़ौत हो जाने वाले मरीज़ अपनी सेहत से मुताल्लिक़ लापरवाह थे या फिर उन्होंने परहेज़ करने से परहेज़ किया ? माहिरीन सेहत का कहना है कि हर इंसान को अपनी जान प्यारी होती है।
परहेज़ ना करने का सवाल ही पैदा नहीं होता। ख़ुसूसी तौर पर डायबिटीज़ का मरीज़ अगर परहेज़ करे तो वो मर्ज़ की शिद्दत के बावजूद एक तिब्बी ज़िंदगी गुज़ार सकता है। माहिरीन का ये भी कहना है कि डायबिटीज़ के मरीज़ को इन्सुलीन लेने की कभी नौबत ही ना आए।
अगर वो नाशपाती, बंदगोभी, स्ट्राबेरी, बीन्स की फल्ली, पालक, सेब, भिंडी, बैगन, चीरी, ग्रीन टी, सरका, मेथी के बीज, चपाती, जामुन और फलों के अर्क़ का वक़तन फ़वक़तन इस्तेमाल करता रहा।
ये बात भी दुरुस्त है कि डायबिटीज़ के मरीज़ को खानों के दरमयानी वक़्त में भी कभी कभी भूख लगती है जिस के लिए हल्का फुलका नाशतादान भी किया जा सकता है लेकिन याद रहे कि पानी की मिक़दार में हरगिज़ कमी ना हो। पानी भरपूर मिक़दार ( मात्रा) में पीना चाहीए और नींद से दामन नहीं बचाना चाहीए।
कुछ लोग रात देर गए तक बिलावजह जागते रहते हैं जबकि उन्हें सुबह जल्द उठ कर अपनी डयूटी पर जाना होता है। ज़रूरत इस बात की है कि नींद के लिए मुख़तस अपने सात या आठ घंटों की बहरहाल तकमील ( पूरी) की जाए और साथ ही साथ अगर हल्की फुल्की वरज़िश करने का वक़्त निकाला जाए तो बेहतर होगा।
डायबिटीज़ को मोहलिक मर्ज़ ज़रूर कहा जाता है, लेकिन उस को हलाकत ख़ेज़ बनाने में ख़ुद हमारी ग़ैर ज़िम्मेदारी का अमल दख़ल है।