डार्क वेब, जहां गुमनामी ही असल ख़ूबी है

वाशिंगटन ०४ फ़रवरी (एजैंसीज़) इंटरनेट की आम दुनिया से परे एक ऐसी ऑनलाइन दुनिया भी मौजूद है जिसे डार्क वेब कहा जाता है। ये एक ऐसा गुमनाम आलमी इंटरनेट निज़ाम है जिसे तलाश करना तक़रीबन नामुमकिन है और इस की यही ख़ुसूसीयत उसे सयासी कारकुनों से लेकर मुजरिमाना सरगर्मीयों में मुलव्वस अफ़राद तक सब में मक़बूल बनाती है।

डार्क वेब दरअसल दुनिया भर में मौजूद ऐसे कम्पयूटर सारिफ़ीन का नेटवर्क है जिन का मानना है कि इंटरनेट को किसी क़ानून का पाबंद नहीं होना चाहीए और ना ही इस पर क़ानून नाफ़िज़ करने वाले इदारों को नज़र रखनी चाहीए। अमेरीकी तालिब-ए-इल्म डेविड (असल नाम नहीं) भी एक ऐसे ही फ़र्द हैं जो इस डार्क वेब के सारिफ़ हैं। इन का कहना है कि वो उसे गै़रक़ानूनी मुनश्शियात की ख़रीदारी के लिए इस्तेमाल करते हैं।

उन्होंने कहाकि अब उन्हें सड़क किनारे मौजूद किसी मुनश्शियात फ़रोश का सामना नहीं करना पड़ता, जहां तशद्दुद का ख़तरा मौजूद रहता है और इंटरनेट की इस ब्लैक मार्केट में सिर्फ मुनश्शियात ही नहीं बल्कि जाली पासपोर्टस, हथियार, फ़हश मवाद सब कुछ मयस्सर है। ये नेटवर्क डेविड और उसे मुनश्शियात बेचने वाले अफ़राद दोनों को गुमनाम रहने में मदद देता है।

अक्सर ग्राहकों को ये नहीं पता होता कि वो जिससे लेन देन कर रहे हैं इस की असलीयत क्या है और हुक्काम के लिए इन का पता लगाना भी अगर नामुमकिन नहीं तो बेहद मुश्किल ज़रूर है। इस नेटवर्क के एक सारिफ़ का कहना है कि मैं आम लेन देन के मुक़ाबले में ऑनलाइन लेन देन को ज़्यादा महफ़ूज़ समझता हूँ।

मैं पहले खुले आम मुनश्शियात फ़रोशी करता था लेकिन अब किसी भी ऐसे काम के लिए डार्क वेब इस्तेमाल करता हूँ। एक और सारिफ़ ने बताया कि अगर आप नौजवान हैं और गांजा से ज़्यादा असरदार किसी भी नशा आवर शैय की तलाश में हैं तो गिरफ़्तार हुए या हुक्काम की नज़रों में आए बगै़र ऐसा होना अमलन नामुमकिन है।किसी सारिफ़ की डार्क वेब तक रसाई कादार-ओ-मदार इस के पास मौजूद प्यूरिटो प्योर फाईल शेयरिंग टैक्नोलोजी के सॉफ्टवेर पर होता है।