डीएम बन लाखों की चपत लगानेवाले गिरोह गिरफ्तार

कमिश्नर और डीएम बन कर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और मगरीबी बंगाल के कई अफसरों को हजारों-लाखों की चपत लगानेवाले गिरोह के आठ जालसाजों को पुलिस ने पटना जिले के मुखतलिफ़ मुकामात पर छापेमारी कर गिरफ्तार कर लिया। उनके पास से 17 लाख रुपये कीमत की महंगी महिंद्रा एक्सयूबी 500, स्विफ्ट कार, दो लैपटॉप, सात एटीएम कार्ड, मुखतलिफ़ बैंकों की पासबुक, दो मॉडम, सॉफ्टवेयर से मुतल्लिक़ सीडी, पेन ड्राइव वगैरह बरामद किये गये हैं। इन्हें बिहार, झारखंड, यूपी और मगरीबी बंगाल की पुलिस दो साल से खोज रही थी।

पटना पुलिस ने 11 नवंबर को मां-बेटे अर्चना देवी और अमित कुमार (गर्दनीबाग न्यू रोड काली बाड़ी) और आशीष (जक्कनपुर) को पकड़ लिया। जब डीएसपी मनीष कुमार की कियादत में टीम ने तहक़ीक़ात शुरू किया, तो इसमें रूपम कुमार (बैरिया, प्रेम नगर, गोपालपुर) का नाम आया।

साथ ही पुलिस को यह भी जानकारी मिली कि कॉरपोरेशन बैंक ऑफ इंडिया में कई खाताधारी हैं, जिनके खाते में अपने आप को कमिश्नर और जिला अफसर बताते हुए मातहतों से पैसा डलवाने के लिए कहा गया। पुलिस ने रूपम को पकड़ा तो इस गिरोह की परत-दर-परत खुलने लगी। उसकी निशानदेही पर अमित कुमार उर्फ सोनू, अविनाश श्रीवास्तव उर्फ छोटू, राजीव उर्फ राजू, प्रेम लाल उर्फ प्रेम, राजीव कुमार उर्फ अनंत, नीरज कुमार व सतीश कुमार को गरफ्तार कर लिया गया। हालांकि, गिरोह का मास्टर माइंड रंजन कुमार मिश्र फरार होने में कामयाब रहा।

हाइटेक तकनीक : कई सॉफ्टवेयर की मदद से ये लोग कमिश्नर, जिला अफसर और दीगर अफसारों के मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करते थे। बताया जाता है कि इन सॉफ्टवेयर पर यह निज़ाम होती है कि वे किसी से भी बात कर सकते हैं या वीडियो कॉलिंग कर सकते हैं। सॉफ्टवेयर में इन लोगों ने फर्जी एकाउंट बना लिया था और उसी के जरिये किसी अफसर को फोन करते थे। एकाउंट बनने के बाद जिसे भी फोन करना है उसका नंबर डायल करना होता है। यह करते ही कंप्यूटर में अपना नंबर डालना होता है। ये लोग किसी कमिश्नर और डीएम का नंबर उसमें डाल देते थे, जिसकी वजह ये जिसे भी फोन करते थे उसके मोबाइल फोन पर कमीशर और जिला अफसर का मोबाइल फोन नंबर दिखता था और अफसर झांसे में आ जाते थे। बात करने की जिम्मेवारी गिरोह के मास्टर माइंड रंजन कुमार मिश्र की थी। वह फर्जी कमिश्नर और जिला अफसर बन कर मातहतों को हिदायत देता था कि कुछ जरूरी काम के लिए पैसों की जरूरत है, वह तुरंत ही इस एकाउंट नंबर में उतने पैसे डाल दें। बॉस का फोन आया और वह भी उनके नंबर से तो कोई भी चकमा खा जाता और तुरंत ही बताये गये एकाउंट में पैसे डाल देता।

मजबूत नेटवर्क : गिरोह के तमाम मेंबरों को मिले थे अलग-अलग काम। जैसे ही एकाउंट में पैसे आने की जानकारी मिलती, तो रंजन मिश्र इस बात की जानकारी अविनाश को देता था। अविनाश, राजीव , नीरज, अमित एटीएम से रकम निकालते थे। ये लोग फर्जी वोटर कार्ड और ड्राइविंग लाइसेंस का इस्तेमाल कर बैंकों में खाता खुलवाते थे। इतना ही नहीं ये किसी को इस बात का भी लालच देते थे कि उसका पैसा उनके खाते में आयेगा, वह अगर निकाल कर दे देंगे तो उसके लिए पांच फीसद कमीशन दिया जायेगा। खाता की इंतेजाम करने की जिम्मेवारी रुपम और अमित उर्फ सोनू की थी। खदशा है कि यह गिरोह हवाला से भी जुड़ा है।