डीज़ल की क़ीमतों का निज़ाम सरकारी कंट्रोल से आज़ाद

डीज़ल की क़ीमतों के ताय्युन का निज़ाम सरकारी कंट्रोल से आज़ाद करने का इशारा देते हुए मर्कज़ी वज़ीर तेल धरमिंद्र प्रधान ने आज कहा कि बैन-उल-अक़वामी बाज़ार में इस बात के वाज़िह इशारे मिले हैं कि विज़ारत -ए-तेल मुनासिब फ़ोर्म से रब्त पैदा करेगी ताकि क़ीमतों के ताय्युन को सरकारी कंट्रोल से आज़ाद किया जा सके।

चिल्लर फ़रोशी की क़ीमतों और दरआमद की लागत में काफ़ी फ़र्क़ पाया जाता है जिस की वजह से काफ़ी ख़सारा होरहा है। जारिया माह ये ख़सारा कम होकर 60 पैसे फ़ी लीटर रह गया जिस की वजह क़ीमत में माहाना इज़ाफ़ा और बैन-उल-अक़वामी सतह पर तेल की क़ीमतों में कमी थी।

हमें बैन-उल-अक़वामी मंडी से अच्छे इशारे मिल रहे हैं लेकिन फ़िलहाल कोई भी फ़ैसलाकुन बात तए नहीं हुई। प्रधान ने ब्यूरो आफ़ एनर्जी एफीशियंसी ईवंट के मौक़े पर अलाहदा तौर पर प्रेस‌ कान्फ्रेंस‌ से ख़िताब के दौरान इस का इन्किशाफ़ किया। एन डी ए हुकूमत ने साबिक़ यू पी ए हुकूमत की पालिसी बरक़रार रखी है।

डीज़ल की क़ीमत में हर माह मामूली सायानी 50 पैसे फ़ी लीटर का इज़ाफ़ा किया जा रहा है ताकि लागत और चिल्लर फ़रोशी की क़ीमतों में फ़र्क़ की वजह से होने वाले ख़सारा को कम किया जा सके। अप्रैल 2002 में जब एन डी ए हुकूमत बरसरे इक़तेदार थी,पैट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों को हुकूमत के कंट्रोल से आज़ाद कर दिया था लेकिन एन डी ए दौर-ए-हकूमत के ख़ातमे पर माली साल 2004 की पहली सहि माही में पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों का ताय्युन पिछले दरवाज़े से दुबारा हुकूमत के कंट्रोल में आगया है।