डेनमार्क में मुहाजिरीन के असासों पर दिन दीहाड़े डकैती

डेनमार्क की पार्लीमान में मंगल छब्बीस जनवरी के रोज़ तारकीने वतन के असासे तहवील में लेने के मुतनाज़ा क़ानून पर राय शुमारी हो रही है। बैनुल अक़वामी सतह पर तन्क़ीद के बावजूद डैनिश हुक्मरान ये नया क़ानून मंज़ूर करवाने पर अड़े हैं।

डेनमार्क में समाजी इंज़िमाम के उमूर की मर्कज़ी वज़ीर एंगर स्टीबर्ग के दफ़्तर को एक ख़त मौसूल हुआ है, जिसके साथ एक अँगूठी भी थी। ये ख़त एक रूसी नज़ाद डैनिश मुसन्निफ़ ने लिखा है, जिसके मुंदरिजात कुछ यूं हैं- मेरे दादा और दादी 1860 की दहाई में रूस से आकर डेनमार्क में आबाद हुए थे।

मेरी मालूमात के मुताबिक़ जब वो लोग डेनमार्क की हदूद में दाख़िल हुए थे, तो उनके असासे सरकारी तहवील में नहीं लिए गए थे। लेकिन अब आने वाले मुहाजिरीन को इस ज़िल्लत आमेज़ तजुर्बे से गुज़रना पड़ेगा।

इसी लिए मैं अपनी दादी की अँगूठी आपको भेज रहा हूँ। मेवरिक ने इस ख़त और उस के साथ भेजी गई अँगूठी की तस्वीर फेसबुक पर पोस्ट की तो चंद ही मिनटों में इस पर हिमायत और मुख़ालिफ़त में सैंकड़ों तबसरे लिखे गए।