डॉक्टरेट की उपाधि हासिल करने वाली इंग्लैंड की सबसे कम उम्र की छात्रा बनीं ‘फाहमा मोहम्मद’

आज के दौर में दुनिया का हर इंसान अपनी ही दौड़ में इतना मशगूल है कि समाज में रह रहे बाकी इंसानों के हक़ों के लिए आवाज़ उठाने का सोचता तक नहीं है। बहुत ही कम शख्श हैं ऐसे जो आम आदमी की सोच जो “मुझे क्या फर्क पड़ता है?” से आगे बढ़कर “उनके साथ गलत हो रहा है ऐसा नहीं होने देंगे” तक पहुँचती है।

ऐसी ही ख़ास सोच की मालिक हैं इंग्लैंड की रहने वाली फाहमा मोहम्मद जिन्होंने सोमालियाई औरतों और लड़कियों के हक़ों के लिए आवाज़ उठाकर वहां ऐसा बदलाव लाने की मुहीम छेड़ी जिसकी वजह से आज उन्हें इंग्लैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ़ लीसेस्टर की तरफ से डॉक्टरेट की उपाधि से नवाज़ा जा रहा है।

फाहमा 14 साल की थी जब उसने सोमालिया में महिलाओं और लड़कियों में खतना करने यानी फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन के खिलाफ आवाज उठाई क्योंकि इस प्रथा से महिलाओं और लड़कियों में संक्रमण फैलने और मौत होने की घटनाएं काफी ज़्यादा होती हैं। फाहमा के इस काम की तारीफ यूनाइटेड नेशन्स के सेक्रेटरी जनरल बान की-मून ने फाहमा से निजी तौर पर मिलकर और कई कार्यक्रमों के दौरान भी की।

फाहमा को इस काम के लिए लीसेस्टर यूनिवर्सिटी ने उसे डॉक्टरेट की उपाधि से नवाज़ने की घोषणा की है। इस उम्र में डॉक्टरेट की उपाधि हासिल करने वाली फाहमा इंग्लैंड की पहली लड़की हैं।