नई दिल्ली: जेनेटिक फ़ैक्टर की निशानदही से कैंसर के ख़तरे की पहचान कैसे की जाए, इसका पता लगाया है कश्मीरी मूल के डॉक्टर रऊफ़ बांडे ने. ‘नेचर जेनेटिक्स’ नाम की पत्रिका ने अपने नवंबर अंक में डॉक्टर रऊफ़ की खोज को प्रकाशित किया है.
डॉक्टर रऊफ़ अमरीका के नैशनल कैंसर इंस्टीट्यूट में हैं. वह कश्मीर के बीरवाह इलाक़े के हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एमएससी और पीएचडी डिग्री लेने के बाद वह अमरीका चले गए थे.
बीबीसी के अनुसार, मेडिकल साइंस के लोग मानते हैं कि डॉक्टर रऊफ़ की इस खोज से कैंसर रोकने का रास्ता साफ़ हो सकता है. डॉक्टर रऊफ़ और डॉक्टर लुदमिला प्रोकुनिन-ऑल्ससोन ने जीन और कैंसर के रिश्तों पर काम किया है.
डॉक्टर रऊफ़ बताते हैं, “असल में कोशिकाओं में डीएनए के बदलाव की वजह से कैंसर होता है. हमने ब्लैडर और ब्रैस्ट कैंसर के मरीज़ों और सामान्य लोगों का डीएनए लेकर उनकी तुलना की. हमने देखा कि जो डीएनए तब्दीलियां कैंसर में होती हैं, वो रिस्क फ़ैक्टर वाले लोगो में ज़्यादा होती हैं और जिनमें रिस्क फ़ैक्टर कम हो, उनमें तब्दीलियां कम होती हैं.”
उनहोंने कहा कि , “इससे जीनोमिक मेडिसन यानी कैंसर की दवा बनाने में मदद मिल सकती है. हालांकि यह अभी शुरुआती खोज है.”
कश्मीर के स्किम्स अस्पताल के न्यूक्लियर मेडिसिन के हेड डॉक्टर शौकत हसीन ख़ान कहते हैं कि यह खोज कैंसर की दवा बनाने की दिशा में काफ़ी मददगार हो सकती है.