पटना 2 जुलाई : हर गाड़ी में ड्राइवर की सीट का मतलब एक आदमी होता है, लेकिन दारुल हुकूमत में चलनेवाले ऑटो और मिनीटोर में ड्राइवर की सीट का मतलब तीन सवारी है। जी हां, क़वानीन को ताक पर रख कर ऑटो चलानेवाले ये ड्राइवर पैसे की खातिर सवारी की जान को भी खतरे में डाल देते हैं।
दारुल हुकूमत में चलनेवाले ऑटो की हालत ऐसी होती है कि इसमें दोनों तरफ सवारी का नसफ़ जिस्म ऑटो से बाहर ही होता है। गुजिस्ता एक महीने से चलाये जा रहे खुसूसी जांच मुहीम के बावजूद ट्रैफिक इंतेजामिया की नजर इस पर नहीं जाती। यही वजह है कि इन ऑटो ड्राइवर की मानमानी जारी है।
हर रूट का यही हाल
यह हाल किसी एक रूट पर नहीं, बल्कि शहर के तमाम रूट पर चलनेवाले ऑटो का है। जंकशन से बोरिंग रोड हो या गांधी मैदान, गांधी मैदान से दानापुर हो या पटना सिटी, हर रूट पर चलनेवाले ऑटो या मिनीडोर में आपको ड्राइविंग सीट पर चार लोग बैठे दिख जायेंगे। मगर अफसोस की बात यह है कि इंतेजामिया की नजर इस पर नहीं जाती। ऑटो ड्राइवरों की मनमानी के आगे किसी की नहीं चलती। किसी मुसाफिर के मुखालिफ करने पर उनको बैठाया ही नहीं जाता। जल्दी पहुचने की मजबूरी से लोग ड्राइवर के बगल में बैठ कर सफर करते हैं।
सीट से दोगुना मुसाफिर
शहर बस सर्विस की बसों में भी आपको भेड़-बकरियों की तरह मुसाफिर लदे दिख जायेंगे। इन बसों में बैठने की सलाहियत महज 20 से 25 मुसाफिरों की होती है, मगर सीट के दोगुने से ज्यादा लोग सफर करते हैं। इस पर भी इंतेजामिया की नजर नहीं जाती।