तख़ल्लुस

एक महफ़िल में कुछ शायर बेख़ुद देहलवी और साइल देहलवी का ज़िक्र कर रहे थे।
एक शायर ने शेर सुनाए जिस में दोनों के तख़ल्लुस नज़्म हुए थे। वहां हैदर देहलवी भी मौजूद थे। शेर सुनकर कहने लगे।

इस शेर में साइल और बेख़ुद तख़ल्लुस सिर्फ़ नाम मालूम होते हैं। कमाल तो ये था कि शेर में तख़ल्लुस नज़्म हो,जो महेज़ नाम मालूम ना हो।
किसी ने कहा ये कैसे मुम्किन है?

हैदर ने वहीं बरजस्ता ये शेर कह कर सब को हैरान कर दिया:
पड़ा हूँ मैकदे के दर पे इस अंदाज़ से हैदर
कोई समझा कि बेख़ुद है कोई समझा कि साइल है