तमाम बच्चों को हिफ़्ज़ कराने ऑटो ड्राईवर निज़ाम उद्दीन फ़ारूक़ी का अज़म

दीन से दूरी इंसान को तबाही और बर्बादी के दलदल में धंसा देती है। अगरचे उसे दुनिया तो मिल जाती है, दौलत शोहरत और इज़्ज़त उस के हिस्सा में आ जाते हैं लेकिन आख़िरत तबाह हो जाती है। आज मुसलमानों की जो हालते ज़ार है इस का सब से अहम सबब दीन से हमारी दूरी है।

दीन की रस्सी को मज़बूती से थाम लें तो ज़िंदगी के हर मैदान ख़ासकर तालीमी मैदान में हमारी कामयाबी यक़ीनी है। क़ारईन आप सोच रहे हैं कि ये ख़्यालात किसी वाइज़ के हैं जो उन्हों ने इस्लाह मुआशरा की तहरीक में अपने वाअज़ में मामूल के मुताबिक़ ज़ाहिर किए हों लेकिन ऐसा नहीं बल्कि ये ख़्यालात हमारे एक ऑटो ड्राईवर भाई के हैं जिन्हों ने अपने तमाम बच्चों को सब से पहले इल्म दीन से आरास्ता करने का तहैया कर लिया है।

मुहम्मद निज़ाम उद्दीन फ़ारूक़ी साकिन बालापूर (उम्र 40 साल) गुज़िश्ता 17 बरसों से ऑटो चला रहे हैं। उन्हों ने आठवीं जमात तक तालीम हासिल की लेकिन तालीम के सिलसिले को तर्क करते हुए मुहम्मद निज़ाम उद्दीन फ़ारूक़ी ने ऑटो चलाने शुरू कर दिया। वो बर्सों से दीनी इजतिमाआत बिलख़ुसूस जल्से सीरतुन्नबी (सल.) में शरीक रहा करते थे।

उन जल्सों में शिरकत के बाइस उन के ज़हन और दिल में ये ख़्याल ज़ोर पकड़ने लगा कि मुसलमान लड़के लड़कियां दीनी तालीम से महरूमी के बाइस बेराह रवी का शिकार हो रहे हैं। उन में हराम और हलाल की तमीज़ का फ़ुक़दान है। मुआशरा में नित नए किस्म की बुराईयां पनप रही हैं।

चुनांचे मुहम्मद निज़ाम उद्दीन फ़ारूक़ी और उन की अहलिया नसीमुन्निसा ने जो एंटरमेडीएट तक तालीम हासिल कर चुकी हैं अपने तीनों लड़कों और दो लड़कियों को हिफ़्ज़ कराने और उन्हें आलिम बनाने का फैसला किया और अल्लाह ताला ने उन की नीयतों और इरादों को क़ुबूल करते हुए बड़े बेटे मुहम्मद शहबाज़ उद्दीन फ़ारूक़ी को हाफ़िज़े क़ुरआन बनने का एज़ाज़ अता किया जब कि दूसरा लड़का 12 साला मुहम्मद शीराज़ फ़ारूक़ी उर्फ़ महमूद 28 पारे हिफ़्ज़ कर चुका है।

तीसरे फ़र्ज़ंद 10 साला मुहम्मद सैफ उद्दीन फ़ारूक़ी फ़िलवक़्त दसवां पारा हिफ़्ज़ कर रहे हैं उम्मीद है कि एक देढ़ साल में वो भी हाफ़िज़ बन जाएंगे। हमें इन साहिब के पाकीज़ा जज़बात को देख कर हैरत नहीं हुई इस लिए कि अल्लाह ताला अपने किसी बंदा पर रहम करता है, तो उसे इल्म की दौलत से मालामाल कर देता है और इल्म ऐसी दौलत है जिसे कोई चुरा सकता है ना दबा सकता है बल्कि उसे जितना तक़सीम किया जाए उस में उतनी ही बरकत होती है। यानी बांटने से इल्म कम नहीं होता बल्कि इस में मुसलसल इज़ाफ़ा ही होता रहता है।