नई दिल्ली, ०५ जनवरी: (यू एन आई) राज्य सभा की मुंख़बा कमेटी ने निहायत ग़ौर-ओ-ख़ौज़ के बाद अगरचे अपनी तजावीज़ और ज़रूरी हज़फ़-ओ-इज़ाफ़ा के साथ 2010 के वक़्फ़ तरमीम बिल पर अपनी रिपोर्ट 17 दिसंबर 2011 को राज्य सभा में पेश कर दी लेकिन ये रिपोर्ट अब भी ख़ामीयों और नुमायां गफलतों से भरी है जिन की तरफ़ फ़ौरी तवज्जा दे कर ज़ोर-ओ-शोर से आवाज़ उठाने की ज़रूरत है , वर्ना लम्हों की ख़ता सदीयों की सज़ा पर मुहीत हो जाएगी।
इन ख़्यालात का इज़हार ज़कात फ़ाउंडेशन आफ़ इंडिया के सदर डाक्टर सैयद ज़फ़र महमूद ने किया। उन्हों ने सख़्त अफ़सोस का इज़हार करते हुए कहा कि मुस्लमान ख़ुद अपने मुतालिबात केलिए आगे नहीं आते और फिर जब उन के साथ नाइंसाफ़ी होती है तो चीख़-ओ-पुकार मचाते हैं।
उन्हों ने वक़्फ़ बिल की नुमायां ग़लतीयों और दानिस्ता नजर अंदाज़ किए जाने वाले नकात की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि ख़ासकर ऐसे वक़्त में जबकि इंतिख़ाबात होने वाले हैं मुस्लमानों को मुत्तहिद हो कर अपनी आवाज़ उठानी चाहीए।
डाक्टर ज़फ़र महमूद ने कहा कि राज्य सभा की मुंख़बा कमेटी ने अक़ल्लीयती उमूर के आफ़िसरान की जानिब से कमियों पर किए गए एतराज़ात की तहक़ीक़ ही नहीं की और ना उसे दूर करने की कोई कोशिश की। उन्हों ने कहा कि तमाम मुस्लमानों को यू पी ए चेयरपर्सन सोनीया गांधी, वज़ीर-ए-आज़म मनमोहन सिंह और कांग्रेस जनरल सैक्रेटरी राहुल गांधी के इलावा तमाम सयासी जमातों के लीडरों के सामने अपने मुतालिबात रखने चाहिऐं।
डाक्टर महमूद ने जो ख़ुद सच्चर कमेटी में स्पेशल अफ़्सर रह चुके हैं , कहा कि राज्य सभा की कमेटी ने सच्चर कमेटी और मुशतर्का पारलीमानी कमेटी की इस बात का अपनी रिपोर्ट में कोई ज़िक्र ही नहीं किया कि औक़ात के उमूर में अफ़्सर शाही की मुदाख़िलत रोकी जाए।