तमाम साईंसी तहक़ीक़ और ईजादात क़ुरआन मजीद के ताबे

रियाद, ३० दिसम्बर: (एजेंसीज़) आज मुल्क भर के आलमी साईंसदाँ हर रोज़ एक नई ईजाद का ऐलान करते हैं लेकिन क़ुर्बान जईए इस मुक़द्दस किताब को जिसे हम क़ुरआन मजीद कहते हैं, साईंस और साईंसदाँ के तमाम उसोल-ओ-ज़वाबत-ओ-ईजादात, रिसर्च, क़ुरआन मजीद के मरहून-ए-मिन्नत और इस के ताबे हैं।

जैसा कि कहा जाता है कि क़ुरआन मजीद एक मुकम्मल ज़ाबता-ए-हयात है और लाज़िमी बात है कि जब ज़िंदगी गुज़ारना हो तो नई नई ईजादात भी सामने आयेंगी । क़ुरआन मजीद ने अख़लाक़ का जो दरस दिया है उसे रसूल अकरम सल्लाह अलैहि‍ वसल्लम की हुस्न-ए-अख़्लाक़ का नाम भी दिया जाता है।

प्रोफेसर सालिह बिन मुहम्मद उल-हसन ने अपने मक़ाला सुला फ़ीट वीज़न ऑन बैंकिंग साईंस ऐंड साइंटिस्ट्स एक समपोज़ीम में पेश किया जिस का आज दूसरा दिन है।

मज़कूरा समपोज़ीम सलफ़ी नज़रिया, शरईह और क़ौमी मुतालिबा के मौज़ू पर इमाम मुहम्मद बिन सऊद इस्लामी यूनीवर्सिटी मौक़ूआ रियाज़ मुनाक़िद किया गया जहां यूनीवर्सिटी के नायब सदर यवफ़सफ़ अलद रवीश ने अपने मक़ाला में इस बात पर ज़ोर दिया कि मुस्लमानों के लिए मिसाली हुकूमत या हुकमरां वही हो सकता है जो फ़र्दे वाहिद हो।

हुकूमतें अगर सिर्फ एक ही हुक्मराँ की सरपरस्ती में चलाई जाएं तो वो बेहतर नज़म-ओ-नसक़ की हामिल हो सकती हैं। उन्हों ने कहा कि अवाम को हुकमरानों की ज़रूरत है और इस की ख़िलाफ़वरज़ी करने से क़ुरआन मजीद और संत ने भी मुंह फ़रमाया है।