तरक़्क़ी और माहोलयाती तहफ़्फ़ुज़(सुरक्षा) के दरमियान(बीच) तवाज़ुन(संतुलन) बनाए रखना जरूरी

ज़राअत(खेती) में खाद के इस्तेमाल से हमारी ज़मीन की मिट्टी अपना असर खो रही है बिहार में सदर जमहूरीया (राष्ट्रपति)प्रानब मुकर्जी का ख़िताब सदर जमहूरीया(राष्ट्रपति) प्रानब‌ मुकर्जी ने आज तरकियाती ज़रूरियात और माहोलयाती तहफ़्फ़ुज़(सुरक्षा) के दरमियान(बीच) तवाज़ुन(संतुलन) पैदा करने की वकालत की और कहा कि हमें अव्वलीन सबज़ इन्क़िलाब के तजुर्बात से दरस हासिल करने की ज़रूरत है ।

बिहार में अगले पाँच साल का ज़रई रोड मयाप शुरू करते हुए अपने ख़िताब में सदर जमहूरीया ने कहा कि बिहार को दूसरे ज़रई इन्क़िलाब केलिए पहली मंज़िल साबित होना चाहीए जिस से मशरिक़ी हिंदूस्तान महरूम है । चीफ मिनिस्टर बिहार नितेश कुमार की कोशिशों की सताइश करते हुए कि उन्हों ने ज़राअत में हमा रंगी इन्क़िलाब लाया है।

उन्हों ने कहा कि वो रियासती गवर्नर देव आनंद कंवर के नज़रिया से मुत्तफ़िक़ हैं कि कई रियासतों में बिहार का ज़रई रोड मयाप वज़ा करना होगा । इस बात को यक़ीनी बनाना ज़रूरी है कि किसानों को उन की एशिया-ए-की कीमत फ़ौरी हासिल होजाए और उन्हें इज़ाफ़ा शूदा कीमतों का भी हिस्सा मिले जब एशिया-ए-की कीमत में इज़ाफ़ा होता है तो किसान को भी इस का हिस्सा मिले ।

सदर जमहूरीया इस साल जुलाई में जलील अलक़द्र ओहदा पर फ़ाइज़ होने के बाद बिहार का दौरा कर रहे हैं। महात्मा गांधी का हवाला देते हुए प्रानब‌ मुकर्जी ने कहा कि हम को ज़रूरत और हिर्स के दरमियान तवाज़ुन बरक़रार रखना ज़रूरी है। कुर्राह-ए-अर्ज़ में धरती हमारी माँ है जो हर एक की ज़रूरत को पूरा करती है लेकिन फ़र्द-ए-वाहिद केलिए हिर्स-ओ-लालच पैदा नहीं करना चाहीए ।

उन्हों ने फ़ौरी नताइज के हुसूल केलिए जारी कोशिशों के ख़िलाफ़ ख़बरदार किया और सरदसत फ़सल उगाने के तरीकों की मुख़ालिफ़त की इन का कहना है कि इस अमल के दौरान कई अहम मसाइल को नज़रअंदाज कर दिया जा रहा है । सदर जमहूरीया का पटना पहूंचने पर शानदार ख़ैरमक़दम किया गया ।अवाम की बड़ी तादाद इन का इस्तिक़बाल करने के लिए सड़क के दोनों जानिब क़तार में खड़ी थी

ये रिपोर्ट से तमाम रास्ते पर अवाम ने इन का इस्तिक़बाल किया। सदर जमहूरीया यहां और दरभंगा में तक़ारीब में शिरकत कर रहे हैं कल मुंबई के लिए रवाना होंगे। बज़्लासंजी के साथ प्रानब‌ मुकर्जी ने कहा कि इन दिनों हमसिन रहे हैं कि एक सियासतदां का बेटा सियासतदां बनने की तमन्ना रखता है लेकिन एक किसान का बेटा एक किसान बनने की आरज़ू नहीं रखता।

ये इस लिए है क्योकी एस एन दाता को समाज ने तस्लीम नहीं किया यह मुआशरा में इस को पज़ीराई हासिल नहीं है। पहले सबज़ इन्क़िलाब का हवाला देते हुए सदर जमहूरीया ने कहा कि खाद के बेतहाशा यह इज़ाफ़ी इस्तेमाल से हमारी ज़मीन की कशिश और ख़ूबी कम होरही है इस से मिट्टी के ज़राअत में पाया जाने वाला क़ुदरती पैदावार असर ज़ाइद होरहा है और ज़ेर ज़मीन पानी की सतह पर कम होरही है ।

उन्हों ने कहा कि यहां तक कि आलमी बिरादरी के भी माहौलयात की अबतरी पर तशवीश ज़ाहिर की है। ख़ासकर जो लोग अपनी धरती माँ का इस्तिहसाल(शोषण) करते हैं वो लालची हैं। ये उसे मसाइल(मुद्दे) हैं जिन पर फ़ौरी तवज्जु(ध्यान) देने की ज़रूरत है।