तर्ज़-ए-ज़िदंगी में तबदीली और मउसर ईलाज

भूबनेश्वर, ०७ जनवरी (रत्ना चोटरानी) राशा की बीमारी आगे चल कर डीमनीशया में तबदील होने के अंदेशे मौजूद होते हैं, जिस में मरीज़ अपनी याददाश्त खो बैठता है। इस बीमारी ने न्योरो साईंसदानों को भी तशवीश में मुबतला कर रखा है।

दरीं असना बथीसदा यू एसए की लेबारेटरी आफ़ न्योरो कैमिस्ट्री के मिस्टर हरीश सी पंत का कहना हीका ईलाज और तर्ज़-ए-ज़िदंगी में तबदीली से राशा (एलज़ाइमर) बीमारी के बढ़ने के इमकानात मौहूम होजाते हैं, लेकिन ये बात भी अपनी जगह मुस्लिमा है कि इस बीमारी का अब तक कोई मउसर ईलाज मौजूद नहीं है।

मिस्टर हरीश के मुताबिक़ हर पाँच साल के दौरान इस बीमारी से मुतास्सिर होने वालों की तादाद दोगुनी होजाती है और 65 साल से ज़ाइद की उम्र के लोग इस बीमारी से ज़्यादा मुतास्सिर होते हैं। डीमनशया दरअसल दिमाग़ पर असरअंदाज़ होने वाला एक जरासीम है ।