तलाकशुदा मुस्लिम ख़्वातीन को भी गुजारा-भत्ता

नई दिल्ली: तलाकशुदा मुस्लिम ख़्वातीन को आम कानून के तहत शौहर से गुजारा-भत्ता लेने के हुकूक पर सुप्रीमकोर्ट ने एक बार फिर अपनी मुहर लगा दी है। कोर्ट के हुक्म से तलाकशुदा मुस्लिम ख्वातीन को 4000 रुपये हर माह गुजारा-भत्ता मिलेगा।

सुप्रीमकोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम ख़्वातीन को सीआरपीसी की दफा 125 के तहत माली वज़ीफा ( गुजारा भत्ता) देने के परिवार अदालत के हुक्म को सही ठहराया है। अदालत ने गुजारेभत्ते की रकम घटाने का हाईकोर्ट का हुक्म मंसूख कर दिया है।

ये फैसला जस्टिस दीपक मिश्रा व जस्टिस पीसी पंत की बेंच ने उत्तर प्रदेश की रहने वाली शमीमा फारुकी की दरखास्त कुबूल करते हुए सुनाया है। हालांकि इस मामले में सुप्रीमकोर्ट के नोटिस के बावजूद शौहर की तरफ से कोई पेश नहीं हुआ था। सुप्रीमकोर्ट ने फैसले में बदलते वक्त के साथ ख़्वातीन के कुकूक और इसकी आज़ादी का जिक्र करते हुए कहा है कि अब पुरुषवादी ज़हनियत का कोई जवाज़ नहीं रह गया है।

अदालत ने तलाकशुदा मुस्लिम खातून को सीआरपीसी की दआ 125 के तहत शौहर से गुजारा-भत्ता दिलाए जाने के अपने पहले के फैसलों का हवाला देते हुए कहा है कि परिवार अदालत की तरफ से इस दफा (एक्ट) के तहत गुजारा-भत्ता दिये जाने का हुक्म बिल्कुल सही है।

इस मामले में परिवार अदालत ने शमीमा के शौहर शाहिद खान की ये दलील खारिज कर दी थी कि मुस्लिम खातून सीआरपीसी की दफा 125 के तहत गुजारा-भत्ता नहीं मांग सकती। परिवार अदालत ने कहा था कि मुस्लिम खातून तलाक के बाद भी दफा 125 के तहत परिवार अदालत में गुजारे भत्ते के लिए अर्जी दे सकती है।

परिवार अदालत ने फौज में मुलाज़िमत करने वाले शाहिद खान की आमदनी को देखते हुए 4000 रुपये हर महीने गुजारा भत्ता देने का हुक्म दिया था। कहा था कि जबतक तलाक शुदा बीवी दोबारा शादी नहीं करती उसे गुजारा भत्ता दिया जाता रहेगा।

परिवार अदालत ने दरखास्त दाखिल करने की तारीख से फैसला सुनाए जाने की तारीख तक का 2500 रुपए हरमाह अलग से अदा करने का हुक्म दिया था। फैसले से नाखुश शाहिद ने हाईकोर्ट में अपील की और शाहिद के रिटायरमेंट हो जाने की बुनियाद पर हाईकोर्ट ने गुजारे भत्ते की रकम घटा कर 2000 रुपये हर माह कर दी थी। हालांकि 2500 रुपये हर माह एरियर के हुक्म में कोई बदलाव नहीं किया था।

हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ शमीमा सुप्रीमकोर्ट आयी थी।

सुप्रीमकोर्ट ने हाईकोर्ट का हुक्म मंसूख करते हुए कहा कि बीवी का देख भाल करना शौहर की जिमेदारी है। अगर शौहर कमाने लायक है तो इक्तेसादी तौर पर नाअहल होने का बहाना बना कर अपनी जिम्मेदारी ने नहीं बच सकता। इस इल्ज़ाम को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि शौहर ने गुजारे भत्ते की जिम्मेदारी से बचने के लिए परिवार अदालत के फैसले के बाद अपनी मरजी से रिटायरमेंट ले लिया था ।

उत्तर प्रदेश की रहने वाली शमीमा फारुकी की 26 अप्रैल 1992 को शाहिद खान से शादी हुई थी। शमीमा का इल्ज़ाम था कि शाहिद शादी के बाद उसे दूसरे लोगों से बात नहीं करने देता था। उसे न सिर्फ परेशान किया जाता था बल्कि उसके खानदान से कार की भी मांग की जाती थी।

परेशान होकर वह मायके आ गई। 1998 में उसने परिवार अदालत मे अर्जी देकर दफा 125 में पति से गुजारा भत्ता दिलाने की मांग की। शौहर ने इल्ज़ामात से इन्कार करते हुए कहा कि वह उसे तलाक दे चुका है और मेहर भी अदा कर चुका है इसलिए दफा 125 में गुजारे भत्ते की अर्जी नहीं सुनी जा सकती।