तशद्दुद की आग में तालीम की अलख जगा रही है “सीरिया की मलाला”

जॉर्डन: सीरिया में फैले तशद्दुद की आग में 2013 में 16 साल की माजून अलमेलेहान के सारे ख्वाब जलकर राख हो गए। उसे अपनी मां और तीन भाई-बहनों के साथ जॉर्डन के पनाहगजीन कैंप में पनाह लेनी पड़ी। बावजूद इसके उसने हिम्मत नहीं हारी। कैंप में ही तालीम की अलख जगायी और आज यह लड़की “सीरिया की मलाला” के नाम से मशहूर है।

कैंप में रहने के सबब लोग अपनी बेटियों की जल्द से जल्द शादी करने की कोशिश में हैं ताकि उनका मुसतकबिल महफूज़ कर सकें। मगर माजून एक-एक कैंप में जाकर लड़कियों व उनके खानदान वालों को तालीम की अहमियत के बारे में समझा रही है।

माजून का कहना है, “तालीम से हम मसले को खत्म कर सकते हैं। शादी नाकाम हो सकती है, लेकिन तालीम नहीं।”

गुजश्ता साल फरवरी में माजून की मुलाकात मलाला यूसुफजई से भी हुई थी। दोनों अच्छी दोस्त हैं। मलाला ने माजून की तारीफ करते हुए कहा था कि, “कैंप में जाकर माजून से मिलना एक अच्छा खुशगवार तजुर्बा रहा।

अपने मुल्क के लिए उसकी आंखों में भी बडे सपने हैं। वह सीरिया के हर कोने में अमन देखना चाहती है।”

माजून का पसंदीदा मौजू अंग्रेजी है। उसे साइंस भी बहुत पसंद है। अपने स्कूल की भी उसे याद आती है। उसकी ख्वाहिश सहाफी बनने की है। वह कहती है, “कोई नहीं जानता कि मुस्तकबिल में क्या होना है। लेकिन हमें मुसबत सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। मैं सहाफी बनना चाहती हूं।”

तशद्दुद के सबब सीरिया के 14 लाख से ज्यादा शहरी जॉर्डन में पनाह ले चुके हैं। सरकारी तौर पर सिर्फ 6.30 लाख के नाम ही रजिस्टर हैं। यहां बच्चों की तालीम की परेशानी काफी संगीन है। जॉर्डन के अजराक कैंप में ही 15 हजार से ज्यादा बच्चे हैं। मगर इनके लिए स्कूल व दिगर सहूलियात का इंतेज़ाम नहीं है।