तहफ़्फ़ुज़ ईमान के लिए सीरत रसूल ( स०अ०व०) से वाबस्तगी ज़रूरी

अल्लाह ताला की जानिब से हज़रत इंसान को बेशुमार नेमतें अता की गईं इनमें सब से बड़ी नेमत ईमान है मौत तक उसे बचाने की फ़िक्र की ज़रूरत है। इन ख़्यालात का इज़हार मशहूर मबलग़ मुहम्मद ख़्वाजा कलवा करती ने जलसा रहमतुल आलमीन मुहल्ला इंदिरा नगर कामा रेड्डी में ख़िताब करते हुए किया ।

उन्हों ने कहा कि मौजूदा हालात में मुस्लमान अपने दीन को बचाने की फ़िक्र करें और इसका आसान तरीक़ा ये है कि अपने आप को सीरत से जोड़े रखें । सहाबा ए इक्राम हमेशा अपने आप को सीरत तैयबा से जोड़े रखते थे जिसकी बिना सारे आलम में उन्हें सुर्ख़रूई हासिल हुई ।

एक मुस्लमान को हमेशा अपनी मौत याद रखते हुए ज़िंदगी गुज़रना है यही सबक़ सीरत ने हमें दिया इसके बाद निज़ामाबाद के आलम ए दीन मौलाना अबदुल क़दीर हसामी ने ख़िताब करते हुए कहा हुज़ूर (स०अ०व०) का सबसे बड़ा कारनामा ये रहा है कि आप (स०अ०व०) ने अपने दौर के इंसानों में इंसानियत पैदा फ़रमाई ।

जब तक ईमान से मालामाल नहीं हुए उनकी ज़िंदगी दरिंदों जैसी थी उन्होंने इस वाक़्या के ज़रीया बात समझाई कि एक सहाबी ईमान लाने के बाद आप (स०अ०व०) से पूछते हैं या रसूल अल्लाह क्या ईमान लाने के बाद क्या मेरे सारे गुनाह माफ़ हो गए आप ने फ़रमाया हाँ ।

उन्हों ने कहा कि सारी दुनिया में कामिल इंसान सिर्फ़ हुज़ूर (स्०अ०व्०) हैं और इंसानियत साज़ी आप की सीरत का एक अहम हिस्सा है । इस मौक़ा पर तम्हीदी कलिमात कहते हुए हाफ़िज़ मुहम्मद यूसुफ़ ने कहा कि जलसा का मक़सद सीरत को अपनी ज़िंदगी में दाख़िल करना है ।

जबकि नात ए शरीफ़ हाफ़िज़ मुहम्मद फ़ैज़ान निज़ामाबाद और हाफ़िज़ मुहम्मद इंतिज़ार ने सुनाने की सआदत हासिल की।जलसा का इनइक़ाद एक खुले वसीअ-ओ-अरीज़ मैदान में अमल में लाया गया। क़ाज़ी मलिक मुहम्मद ताहिर, मुहम्मद कलीम सदर मस्जिद नूर, मुहम्मद जलाल उद्दीन सदर इस्तिक़बालीया कमेटी, मुहम्मद हनीफ़ , मुहम्मद रिज़वान , मुहम्मद सलीम , मुहम्मद अज़हर , मुहम्मद इबराहीम , मुहम्मद शफ़ी, मुहम्मद अकबर, मुहम्मद अनवर नाज़िम मुदर्रिसा निज़ाम पेट, हाफ़िज़ फ़हीम उद्दीन मनेरी सदर जमईतुल उल्मा-ए-कामा रेड्डी ,सेक्रेटरी सैयद अज़मत अली, अबदूर्रज़्ज़ाक़ के इलावा सामईन की कसीर तादाद मौजूद थी।

जलसा की कार्रवाई हाफ़िज़ ख़्वाजा यासीन हलीमी ने चलाई।