तहफ़्फुज़ात मुस्लमानों की ख़ुशहाली के ज़ामिन नहीं

करीमनगर, ०६ जनवरी: ( सियासत डिस्ट्रिक्ट न्यूज़) हिंदूस्तान की आबादी में फ़िलहाल 20फ़ीसद मुस्लमानों की आबादी है और वो कल तक हाकिम थे अब मह्कूम हैं, मज़हबी आज़ादी तो ज़रूर है लेकिन सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट सर्वे के मुताबिक़ इस तल्ख़ हक़ीक़त का इन्किशाफ़ हो चुका है कि मुस्लमान इस मुल्क में दीगर अक़्वाम, तबक़ात से हर शोबा-ए-हियात में बिलख़सूस सयासी और तालीमी शोबा में बहुत पीछे हैं। मौलाना मुफ़्ती नदीम उद्दीन सिद्दीक़ी तर्जुमान अहलसन्नत अलजमाअत करीमनगर ने इन ख़्यालात का इज़हार किया। उन्हों ने कहा कि दिल्ली की एक तंज़ीम के हालिया सर्वे ने भी मुस्लमानों की पसमांदगी की नुमायां तौर पर तसदीक़ करदी है और इस तरह से इस की सर अहित की है कि रेलवे में चार फ़ीसद, बैंकों में तीन फ़ीसद मुलाज़मतें हैं। इसी तरह सी वे सी में एक फ़ीसद, सी बी आई में एक फ़ीसद, अदलिया में दो फ़ीसद।

इस के इलावा एक दो अहम इदारा जात एस पी जी, दूसरा RAW , अव्वल अलज़कर वज़ीर-ए-आज़म का ख़ुसूसी हिफ़ाज़ती दस्ता और आख़िर-उज़-ज़िक्र हकूमत-ए-हिन्द का खु़फ़ीया महिकमा है इन दोनों में एक भी मुस्लमान मुलाज़िम नहीं है। हिंदूस्तानी फ़ौज जिस की तादाद एक मुलैय्यन तीन लाख है इस में सिर्फ 29हज़ार मुस्लिम मुलाज़मीन हैं। तालीमी शोबा में 25फ़ीसद जिन की उम्र 6ता4साल है उन्हों ने कभी स्कूल ही नहीं देखा है। गोपाल सिंह कमेटी रिपोर्ट के मुताबिक़ मुस्लमानों के सिर्फ 4फ़ीसद बच्चे दसवीं जमात का और ढाई फ़ीसद बच्चे एंटर बारहवीं का इमतिहान देते हैं। इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मुस्लमान तालीमी, मआशी और सयासी मैदान में किस क़दर पीछे हैं जिस के लिए ना सिर्फ हुकूमतें बल्कि ख़ुद मुस्लमान भी बराबर के क़सूरवार हैं। मुस्लमानों को संजीदगी के साथ इस का मुहासिबा करना चाहिये।

मौलाना ने कहा कि मुस्लमानों की तरक़्क़ी की राह में कोई रुकावट या पाबंदी नहीं है बल्कि दीगर अब्ना-ए-वतन के बराबर अक़ल्लीयतों को हर तरह की सहूलतें मयस्सर हैं, आगे बढ़ने के लिए आज़ादी है यही नहीं बल्कि यहां की अक्सरीयत भी मुस्लमानों के हुक़ूक़ के लिए जद्द-ओ-जहद करती ही, इस के बावजूद मुस्लमान तालीमी, मआशी और सयासी मैदानों में पीछे हैं।मौलाना नदीम उद्दीन सिद्दीक़ी ने कहा कि मुस्लमानों को चाहीए कि वो लेने वाला नहीं बल्कि देने वाला बनने केलिए तैय्यारी करना चाहिये, मुस्लमानों को अगर इस मुल्क में अपना मुक़ाम और वक़ार बुलंद करना हो तो आला तालीम, असरी-ओ-फ़न्नी तालीम हासिल करना होगा।उन्हों ने कहा कि मुस्लिम दौलत मंदों और दानिश्वरों को चाहीए कि आला तालीमी इदारों, मैडीकल कॉलिजों, इंजीनीयरिंग कॉलेजों, आई आई एमजे इदारों का क़ियाम अमल में अब लाएंगे और उन मदारिस मैं असरी उलूम के साथ साईंस टैक्नालोजी की तालीम दी जाई। मौलाना ने सख़्त तन्क़ीद करते हुए कहा कि कांग्रेस हुकूमत ने पाँच रियास्तों के इंतिख़ाबात के मद्द-ए-नज़र ओ बी सीOBC) कोटा से साढे़ चार फ़ीसद अक़ल्लीयती तबक़ात को तहफ़्फुज़ात देने का शगूफ़ा छोड़ा है जबकि पसमांदा तबक़ात ने इस के ख़िलाफ़ एहतिजाज की धमकी दी है।उन्हों ने कहा कि ऐसा मालूम होरहा है कि हुकूमत तहफ़्फुज़ात के नाम पर पसमांदा और मुस्लिम तबक़ात में झगड़ा कराना चाहती है।उन्हों ने कहा कि तीन फ़ीसद तहफ़्फुज़ात मुस्लमानों को मंडल कमीशन के तहत पहले से ही हैं, फिर कांग्रेस मुस्लमानों को क्या देना चाहती है ग़ौर करें। उन्हों ने कहा कि सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा कमीशन की रिपोर्ट आकर चार साल होचुके हैं लेकिन कांग्रेस ने पार्लीमैंट में उसे पेश नहीं किया है जबकि सुप्रीम कोर्ट की हिदायत पर कांग्रेस ने रंगा नाथ मिश्रा कमीशन का क़ियाम अमल में लाया था और मुस्लमानों को 15फ़ीसद तहफ़्फुज़ात देने की तजवीज़ रखी थी।अगर ओ बी सी कोटा के तहत तहफ़्फुज़ात देना हो तो अक़ल्लीयतों को साढे़ आठ फ़ीसद देना होगा।उन्हों ने कहाकि मुस्लिम दानिश्वरों को चाहीए कि सिर्फ साढे़ चार फ़ीसद पर बयानबाज़ी और तारीफ़ के पुल बांधने के बजाय रंगनाथ मिश्रा कमीशन रिपोर्ट पर अमल आवरी का मुतालिबा करें।

मुस्लमानों की नाम निहाद क़ियादत को हुकूमत की तारीफ़ करने के बजाय मुस्लमानों को आबादी के तनासुब से तहफ़्फुज़ात मुख़तस करने को यक़ीनी बनाने केलिए हुकूमत पर दबाव डालना चाहिये। वाज़िह हो कि 1948-ए-से एससी, एसटी के साथ साथ मुस्लमानों को भी मुक़न्निना में तहफ़्फुज़ात देने की बात कही गई थी और इस को दस्तूर में शामिल भी किया गया था मगर सरदार पटेल के दबाव और नाकारा मुस्लिम क़ियादत की ख़ामोशी से एक साल के बाद इस शक़ को आईन से निकाल दिया गया।

उन्हों ने कहा कि ये कहना भी ग़लत है कि मज़हब के नाम पर तहफ़्फुज़ात नहीं दिए जा सकते, आर्टीकल 342,341-25-16(A) का जायज़ा लें और सदर जमहूरीया के नोटीफ़िकेशन 1950 का हवाला लेकर फिर 1990 की तरामीम को ज़हन में रख कर तहफ़्फुज़ात के हालात और इस की ज़रूरत को समझने की कोशिश करें और मुस्लमान मुतालिबा करें कि आबादी के तनासुब से तहफ़्फुज़ात दिए जाएं।