तामीर ए बैतुल्लाह एक तारिखी जायज़ा

बैतुल्लाह, ख़ाना-ए-काबा को कहा जाता है , जो मक्का मुअज़्ज़मा में वाकेय् है, दुनिया की इबादतगाहों में बैतुल्लाह शरीफ़ ख़ुदा ए तआला की सब से क़दीम और पहली इबादतगाह है, क़ुरआन करीम में इरशाद है : बेशक सब से पहला घर जो मुक़र्रर हुआ (लोगों की इबादतगाह बनने के लिये) वो मकान है जो कि मक्का में है। अल्लाह तआला ने इब्तेदा ही से इस मकान को ज़ाहिरी, बातिनी ,हिस्सी और माअनवी बरकात से मामूर फ़रमाया और सारे जहां की हिदायत का सरचश्मा क़रार दिया, ज़ाहिरी बरकत ये है कि ख़ाना-ए-काबा जाए अमन है ,जो कोई भी इसमें दाख़िल हो जाए वो मामून‍ ओ‍ महफ़ूज़ रहता है , ख़ाह वो मुजरिम ही क्यों ना हो बातिनी बरकत ये है कि बाअज़ अंबियाए साबेक़ीन और ख़ुद हुज़ूर ( स०अ०व०) का उस मुताबर्रक मकान से रब्त व ताल्लुक़ रहा , नीज़ ख़ाना-ए-काअबा पर हर वक्त अल्लाह की बेशुमार रहमतों का नुज़ूल होता रहता है और हिस्सी व मानवी बरकत ये है कि अल्लाह तआला ने इस मकान में ऐसी कशिश और जाज़बीयत रखी है कि हर बंदा-ए-मोमिन इसकी ज़ियारत का मुतमन्नी रहता है और इसकी तरफ़ चला आता है ।
बैतुल्लाह शरीफ़ की इसी अज़मत ए शान के पेश ए नज़र उसकी तामीर व दिगर खिदमात को अवामुन्नास बल्कि ज़्यादातर बादशाहों ने अपनी सआदत समझा, मुअर्रिखीन ने लिखा है कि मालूम ज़राए के मुताबिक़ अब तक बैतुल्लाह शरीफ़ की तामीर तकरीबन बारह(१२) मर्तबा हो चुकी है , जिन में से सिर्फ़ हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की तामीर का ज़िक्र क़ुरआन ए मजीद में है , बक़ीया तामीरात का ज़िक्र तो अहादीस में है या तारीख़ी रवायात में मौजूद है। ज़ैल में इन तामीरात को बिलतर्तीब बयान किया जाता है बग़ौर मुलाहिज़ा हो:

नंबर एक फ़रिश्तों की तामीर:

बैतुअल्लाह शरीफ़ की सब से पहली तामीर फ़रिश्तों के ज़रीये हुई, ये तामीर अल्लाह तआला के हुक्म से हज़रत आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश से दो हज़ार साल क़ब्ल की गई । (मिरक़ात ५/४१९) साहबे तफ़सीर मज़हरी रह० ने : इन्ना अव्वला बैति वज़ेआ लिन्नास ” के ज़ैल में एक रिवायत नक़ल फ़रमाई है कि हज़रत अली बिन हुसैन रज़ि० से मर्वी है कि अल्लाह तआला ने अर्श के नीचे एक मकान तामीर फ़रमाया जिसे बैतुल मामूर कहते हैं, फिर फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि इसका तवाफ़ करें, फ़रिश्तों ने इसका तवाफ़ किया, फिर ज़मीनी फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि ज़मीन पर भी इस घर यानी बैतुल मामूर के मानिंद एक घर बनाए, फ़रिश्तों ने तामील हुक्म में बैतुल्लाह की तामीर की और इसका तवाफ़ किया और इस इमारत का नाम ज़ुर्राह रखा।(तफ़सीर मज़हरी २/९५) इस रिवायत को थोड़ी सी तबदीली के साथ इमामे क़रतबा ( रह०) ने भी नक़ल किया है , जिससे मालूम होता है कि बैतुल्लाह की अव़्वल तामीर ब हुक्म इलाही फ़रिश्तों ने की।

नंबर दो तामीर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम :
हज़रत अबदुल्लाह बिन अब्बास रह० से रिवायत है कि जब आदम अलैहिस्सलाम आसमान से ज़मीन पर आए तो फ़रिश्तों की सोहबत और उनकी पाकीज़ा बातें सुनने को ना मिली , जिसकी वजह से दिल मग़्मूम और उदास हो गया, आप ने अल्लाह तआला से दुआ की :ऐ अल्लाह! में फ़रिश्तों से अलग हो गया हूँ , अकेलेपन का एहसास हो रहा है ,तो अल्लाह तआला ने आप को हुक्म दिया कि आप मक्का मुअज़्ज़मा जाएं और वहां मेरा घर तामीर करके इसका तवाफ़ करें और इसके पास नमाज़ पढ़ें, जिस तरह कि फ़रिश्ते मेरे अर्श का तवाफ़ करते और नमाज़ पढ़ते हैं, चुनांचे जिबरईल अमीन की रहनुमाई में हज़रत आदम अलैहिस्सलाम मक्का मुकर्रमा पहुंचे, जिबरईल अमीन ने अपना पर मार कर बैतुल्लाह शरीफ़ की बुनियादें ज़ाहिर कर दी जो बहुत गहरी थीं, फिर फ़रिश्ते पाँच मुख़्तलिफ़ पहाड़ों से पत्थर लाए और हज़रत आदम अलैहिस्सलाम ने हज़रत हव्वा के साथ मिल कर इन पत्थरों से बैतुल्लाह शरीफ़ की तामीर का शर्फ़ हासिल किया।

हज़रत आदम अलैहिस्स्लाम ने पत्थरों से बुनियादें भर दी , जब बुनियादें उभर आएं तो अल्लाह तआला ने फ़रिश्तों के ज़रीया जन्नत का एक खेमा जो याकूत का था इन बुनियादों पर रखवाया, इस तरह ये तामीर हुई। फ़रिश्ते जिन पहाड़ों से पत्थर लाए थे उनके नाम ये हैं: जबलुल बनान, जबल ए तूर,जबल ए ज़ेता, जबल ए जोदी और जबल हेरा‍ । (इब्न ए कसीर १/२३६) जब बैतुल्लाह की तामीर मुकम्मल हो गई तो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को इस का तवाफ़ करने का हुक्म मिला।

नंबर तीन तामीर हज़रत शीस अलैहिस्सलाम :

इमाम अज़रक़ी हज़रत वहब बिन मंबा से रिवायत करते हैं कि याकूत का वो खेमा जो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के लिये जन्नत से उतारा गया था उसे अल्लाह तआला ने हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के विसाल के बाद आसमानों पर उठा लिया था , तब उन्ही बुनियादों पर आप की औलाद ने मिट्टी और पत्थरों से बैतुल्लाह की तामीर की, जो तूफान ए नूह तक क़ायम रही। (अखबार ए मक्का: १९)