तालीमी निसाब को ज़ाफ़रानी बनाने की शदीद मुज़म्मत

जनाब मंसूर अहमद ज़ोनल नुमाइंदा एस आई ओ कर्नाटक ने कहा है कि हुकूमत की जानिब से रियासत के मदारिस में निसाब में तब्दीली करते हुए इसको ज़ाफ़रानी बनाया गया है जबकि प्राइमरी स्कूली तलबा के ज़हन-ओ-दिल दूध की तरह साफ़ और सफेद होते हैं कर्नाटक सरकार कमसिन बच्चों के ज़हन और दिलों में फ़िर्कावारीयत का ज़हर घोलने की कोशिश करते हुए मासूम नौनिहालों के सामने उनकी तहज़ीब और तारीख़ को ग़लत और बेबुनियाद अंदाज़ में पेश कर रही है।

जनाब मंसूर अहमद होटल बुरीद शाही बीदर में एक सहाफ़ती कान्फ्रेंस को मुख़ातब कर रहे थे। उन्होंने बताया कि जमात हशतुम और पंजुम के दर्सी कुतुब का भगवाकरण हो चुका है। अगर ये निसाब रूबमल लाया गया तो कमसिन तलबा-ए-के दिलों और ज़हनों पर मनफ़ी असरात मुरत्तिब होंगे।

मंसूर अहमद ने बताया कि हिंदूस्तान में वक़तन फ़वक़तन फ़सादाद होते रहते हैं। दर्सी कुतुब में भगवाकरण फ़सादाद को मज़ीद हवा देगा। जिसकी ताज़ा मिसाल चेन्नई का एक स्कूल है जहां एक नौ उम्र तालिब-ए-इल्म ने अपनी टीचर का बीदर दाना क़त्ल कर दिया।

जो एक पुरअमन मुआशरा के लिए ख़तरा की घंटी है। उन्होंने बताया कि 2012१3 के समाजी साईंस के निसाब में जमात पंजुम्ता हशतुम दर्सी किताबों में काबिल-ए-एतराज़ मवाद शामिल किया गया है दरअसल हिंदूस्तान एक जमहूरी मुल्क है यहां किसी एक मज़हब की तालीम को तमाम तबक़ात के लिए मुसल्लत करना दरअसल तलबा-ए-को तास्सुब की दावत देना है।

जो मुनासिब नहीं है। उन्होंने बताया कि जो कुछ निसाब तैयार हुआ है इस इशाअत के लिए पहले तमाम तबक़ात बिशमोल मुस्लिम मारहीन तालीम पर मुश्तमिल एक जायज़ा कमेटी तशकील दी जाय जो निसाब से काबिल ए एतराज़ बातों को ख़ारिज करके मुआशरा में अमन और भाई चारा को फ़रोग़ देने के अस्बाक़ शामिल करे।

हमें इंसानों को मिलाने वाला अस्बाक़ चाहीए। नफ़रत, अदावत और तबक़ाती कश्मकश पैदा करने वाले निसाब-ओ-तालीमी निज़ाम की हम शदीद मुज़म्मत करते हैं।