नुमाइंदा ख़ुसूसी
इलम , तालीम और तरबियत ये वो चीज़ें हैं जो एक इंसान को इंसान बनाती हैं । उसे अदब , अख़लाक़ , ज़िंदगी गुज़ारने का सलीका और दूसरों के साथ मुआमलात करने के पाकीज़ा उसूल सिखाती हैं । इलम ही पर क़ौमों के उरूज-ओ-ज़वाल का इन्हिसार(डिपेंड) है । तालीमयाफ्ता क़ौम ही दुनिया पर हुक्मरानी की है मगर जिस शोबे में तिजारत(बिजनस) का उनसर(बीज) दाख़िल होजाए वो शोबा अपनी ओक़ात खोने लगता है ।
ठीक यही हाल तालीम का होचुका है । इन दिनों तालीम तिजारत(बिजनस) बन गई है क्यों कि तिजारती ज़हन रखने वाले लोग इस शोबे में अमल दख़ल करने लगे हैं और उन्हों ने तालीम को भी बाज़ार की किसी शए के मुमासिल(बराबर) बनाकर रख दिया है । अब वो दिन गए जब मुआशरे के अहले ख़ैर और दर्द मंद हज़रात तालीमी इदारों का क़ियाम बुलंद मक़ासिदके तहत किया करते थे ।
अब तालीम सिर्फ़ तिजारत(बिजनस) बन कर रह गई है और जब से तालीम की दुकानें खुल गएं तलबा-ए-असातिज़ा और तालीम गाहों का ताल्लुक़ ख़ालिस माद्दी हो कर रह गया । तालिब-ए-इल्म एक ग्राहक , असातिज़ा पेशा वर माहिरीन और तालीमगाह एक सुपर मार्किट बन गई जहां से इस्तिफ़ादा के लिये अव्वलीन शर्त जेब में हज़ारों रुपये का होना ज़रूरी होगया । शहर के स्कूलों में मुख़्तलिफ़ किस्म की फीसों में होने वाले बेतहाशा इज़ाफे़ ने वालदैन और सरपरस्तों की कमर तोड़ कर रख दी है ।
हालत ये है कि अच्छा ख़ासा कमाने वाला मुतवस्सित तबक़ा भी इन स्कूलों में दाख़िला दिलाने से क़बलदस बार सोचने पर मजबूर है । स्कूल इंतिज़ामीया ना सिर्फ तलबा-ए-की फीस से आमदनी हासिल कर रहे हैं बल्कि स्कूल की कुशादगी(खोलने) से कब्लकिताबों के स्टालस , यूनीफार्मस और स्टेशनरी भी स्कूल से फ़रोख़त करते हुए ज़बरदस्त आमदनी हासिल कर रहे हैं , किताबों के स्टालस लगाने के लिये स्कूल इंतिज़ामीया तलबा-ए-की तादाद के एतबार से हज़ारों से लाखों रुपये पबलीशरज़ और रिटेलरज़ से हासिल करते हुए उन्हें कुतुब की फ़रोख़त की इजाज़त दे रहे हैं ।
स्कूलस की जानिब से हर साल नया निसाब(किताब) शामिल किया जा रहा है । जिस के सबब तलबा-की पुरानी किताबें नाकारा हो जा रही हैं । रोज़नामा सियासत के एक क़ारी ने बताया कि मैं अपने बचा के दाख़िला के लिये शहर के एक आला स्कूल में गया तो स्कूल इंतिज़ामीया ने बताया कि फ़ार्म 200 रुपये का है और रजिस्ट्रेशन फीस 1000 रुपये है और बिल्डिंग फीस 25000 रुपये और बच्चा की किताबें , ड्रेस और शूज़ वगैरह स्कूल से ही खरीदने होंगे । नीज़ उन्हों ने कहा कि हमारे स्कूल में ज़ाबता है कि 3 माह की फीस एक साथ वसूल की जाती है ।
जो बशमोल ट्रांसपोर्ट तक़रीबन 12 हज़ार रुपये होते हैं । इस तरह हमारे एक और क़ारी जनाब मुहम्मद नइम काला पत्थर ने बताया कि मेरी बेटी घर के करीब एक स्कूल में पढ़ती थी वो स्कूल में सब से टाप थी जब में इस के दाख़िला के लिये शहर के एक नामवर स्कूल में गया तो वहां की भारी फीस के सबब मुझे मेरी अहलिया(बिवी) का शादी का तीन तौला सोना फ़रोख़त करना पड़ा । जब कि वो स्कूल , अपार्टमंट में क़ायम है । कोई इस का ग्राउंड भी नहीं है । क़ारईन ! आम तौर पर ये बात सुनने में आती है कि कुछ दवा ख़ानों में डॉक्टर्स बिला वजह तरह तरह के टेसटों के नाम पर कमीशन हासिल करते हैं ।
ठीक यही सूरत-ए-हाल हाल अब चंद स्कूलों में भी होगई है । जिन के यहां किताबों के पबलीशरज़ , ड्रेस , जूते , ट्रांसपोर्ट ग़रज़ हर चीज़ पर कमीशन मुक़र्रर है ।नीज़ कुछ स्कूलों ने दरमियान साल में उसे इसे तरीके निकाल रखे हैं जिन से किसी ना किसी तरह सरपरस्तों से हज़ार दो हज़ार रुपये वसूल करहि लेते हैं । स्कूलों की आमदनी का अंदाज़ा इस से भी लगाया जा सकता है कि ये दाख़िले जारी होने के वक़्त और इस से कब्ल लाखों रुपये इश्तिहारात पर ख़र्च करते हैं । ये रक़म वो कहां से वसूल करते हैं ? इस सूरत-ए-हाल से औलिया-ए-तलबा-ए-को नजात दिलाने के लिये ज़रूरी है कि ज़िला इंतिज़ामीया और महिकमा तालीम इस ख़सूस में कोई ठोस लायेहा-ए-अमल(प्रोग्राम) तय्यार कर के इस को सख़्ती से नाफ़िज़ करे , हर साल महिकमा की जानिब से ख़बर आती है कि इस हवाले से ग़ौर-ओ-ख़ौस किया जा रहा है मगर अमल कुछ भी नहीं होता । ज़राए से ये भी ख़बर मिली है कि शहर के नामवर स्कूलस जो किराया की इमारत में चल रहे हैं और लाखों रुपये इन का किराया दिया जा रहा है ।
उन के ज़िम्मेदारों ने एहतियातन शहर के बाहर वसीअ-ओ-अरीज़ अराज़ी खरीद रखी है ताकि मुनासिब-ए-वक़्त पर वहां शिफ़्ट किया जा सके और आने वाले चंद सालों में एसा होना ही है । एक तरफ़ तो औलिया-ए-तलबा-ए-से ज़िम्मा दारान स्कूल भारी रक़म हासिल कर रहे हैं और दूसरी तरफ़ निहायत ही कम तनख़्वाह पर असातिज़ा की तक़र्रुरी की जा रही है । एक नामवर ख़ानगी(प्राइवेट) स्कूल के एक टीचर ने बताया कि हमारी तनख़्वाहें कितनी हैं ये बताते हुए अपनी फैमिली को हमें श्रम महसूस होती है ।
नीज़ एक ख़ातून टीचर ने बताया कि मुझे स्कूल से तीन हज़ार रुपये तनख़्वाह मिलती है । रोज़ाना मेरे शौहर ऑफ़िस जाते हुए सुबह को मुझे स्कूल छोड़ जाते हैं और वापसी में मैं आटो से घर जाती हूँ जिस पर रोज़ाना 50 रुपये सर्फ़(खरच) होते हैं । जब मैं ने स्कूल इंतिज़ामीया से तनख़्वाह बढ़ाने की बात कही तो उन्हों ने साफ़ जवाब दिया कि आप अपने घर बैठ सकती हैं । हमारे पास इतनी तनख़्वाह पर काम करने वालों की एक लंबी फ़हरिस्त है ।
दूसरी तरफ़ सरकारी स्कूल जहां तालीम बिलकुल मुफ़्त है लेकिन उधर का रुख करने से भी औलिया-ए-तलबा घबराते हैं क्यों कि इन स्कूलों में कोई भी सहूलत नहीं है हती कि जो बच्चे पढ़ते हैं उन के लिये ना ब्लैक बोर्ड है ना बैंचस की सहूलत है और रोज़ बरोज़ ये इदारे बंद होते जा रहे हैं एक सर्वे के मुताबिक़ 2010-11 के दौरान हुकूमत ने 1037 स्कूलस को बंद कर दिया , जिन में से 694 स्कूलस सिर्फ़ तेलंगाना के इलाक़ा में बंद किए गए जब कि 153 आंधरा और 190 राइलसेमा में बंद किए गए ।
बुनियादी सहूलतों और इनफ़रास्ट्रक्चर के फ़ुक़दान के सबब इसी तरह तालीम पर तवज्जा ना देने के सबब वालदैन इन स्कूलों का रुख ही नहीं करते और मजबूरन उन्हें ख़ानगी(प्राइवेट) स्कूलों के बारे में सूचना पड़ता है मगर वहां फीस इतनी भारी रहती है कि आम आदमी इन में अपने बच्चों को नहीं पढ़ा सकता। बहुत से हज़रात इसे हैं जो ख़ुद किराया के मकान में रह कर अपनी कमाई सिर्फ़ बच्चों की तालीम पर ख़र्च करते हैं ।
क़ारईन से हमारी दरख़ास्त है कि वो अपने बच्चों को अपनी पसंद के स्कूल में दाख़िला ज़रूर दिलवाएं लेकिन तालीम को तिजारत(बिजनस) बनने से रोकने में भी अपना हक़ और फ़रीज़ा अदा करें ताकि जो लोग भारी फीस अदा करने के मुतहम्मिल(काबिल) नहीं हैं वो भी अपने बच्चों को ज़ेवर तालीम से आरास्ता कर सकें । औलिया-ए-तलबा बला चूँ-ओ-चरा स्कूल इंतिज़ामीया की हर बात ना मानें , फीस वगैरह में वो हत्तल इमकान कमी करवाएं ।
कुछ रोज़ कब्ल एक जगह रिश्ता की बात होरही थी तो लड़के के वालिद ने कहा कि मैं ने लाखों रुपये ख़र्च कर के अपने लड़के को आला तालीम दिलवाई है अगर जोड़े की रक़म में 5 लाख रुपये और एक कार की ख़ाहिश पूरी की जाय तो इस में क्या ग़लत है । में भी तो अपने लड़के पर लाखों रुपये ख़र्च कर चुका हूँ ।
यानी क़ारईन इस का मतलब ये हुआ कि अगर कोई लड़का भारी फीस अदा कर के आला तालीम हासिल करता है और एक मुक़ाम पर पहुंचता है तो ये सब लड़की के वालिद को शादी के वक़्त अदा करना होगा । लम्हा फ़िक्र ये है कि ज़रा सोचें कि इन सब बुराईयों का ज़िम्मेदार कौन है और इस की इबतदा-ए-कहां से है ? ।।