तिलंगाना : मर्कज़ की बेहिसी कब तक ?

अलैहदा रियासत तलंगाना की तशकील के मुतालिबा पर आम हड़ताल का सिलसिला जारी है । हड़ताल अपने ग्यारह दिन पूरे करचुकी है । इस हड़ताल के नतीजा में ज़िंदगी का तक़रीबन हर शोबा मुतास्सिर है । सरकारी मुलाज़मीन असातिज़ा आर टी सी का अमला वुकला बिरादरी तलबा और हर कोई अलैहदा रियासत के मुतालिबा पर हड़ताल कर रहा है और सरकारी काम काज ठप होकर रह गया है । इस हड़ताल के नतीजा में यक़ीनी तौर पर इलाक़ा तलंगाना के आम आदमी को मुश्किलात का सामना करना पड़ रहा है और हुकूमत इसी बहाना से आम आदमी को इस हड़ताल से मुतनफ़्फ़िर करना चाहती है । ताहम अलैहदा रियासत तलंगाना का मुतालिबा इस क़दर शिद्दत इख़तियार कर गया है कि अवाम ख़ुद को पेश आने वाली मुश्किलात से क़ता नज़र उस हड़ताल के जारी रहने के हक़ में हैं और वो चाहते हैं कि मर्कज़ी हुकूमत और खासतौर पर कांग्रेस हाईकमान इस मसला पर तलंगाना के हक़ में फ़ैसला करते हुए इलाक़ा तलंगाना के साढे़ चार करोड़ अवाम के जज़बात का पास-ओ-लिहाज़ करे । मुख़्तलिफ़ सयासी जमातों के तलंगाना से ताल्लुक़ रखने वाले क़ाइदीन भी एक आवाज़ में इस मुतालिबा की ताईद-ओ-हिमायत कर रहे हैं । कुछ अरकान असैंबली ने तलंगाना के हक़ में ऐवान की रुकनीयत से अस्तीफ़ा भी पेश करदिया है । इन तमाम हालात के बावजूद मर्कज़ी हुकूमत और कांग्रेस हाईकमान की जानिब से किसी ना किसी बहाना से इस मसला को तात्तुल का शिकार किया जाता रहा है । टाल मटोल की पालिसी इख़तियार करते हुए महिज़ वक़्त गुज़ारा जा रहा है । हुकूमत इस मसला पर कोई वाज़िह मौक़िफ़ इख़तियार करने और इस का एक जुमला में कोई जवाब देने को तैय्यार नहीं है । मर्कज़ी हुकूमत के सामने सयासी मस्लहतें हैं और वो उन्हें मसलिहतों की वजह से तलंगाना के मसला को बतदरीज बरफ़दान की नज़र करना चाहती है । हुकूमत अपनी पालिसीयों और मसलिहतों की बिना पर इलाक़ा के अवाम के जज़बात को कुचलना चाहती है । जो तहरीक अलैहदा रियासत तलंगाना केलिए चल रही है उसे अब तो ताक़त के बल पर कुचलने की कोशिश भी शुरू होचुकी है । अलैहदा रियासत के मुतालिबा पर एहतिजाज करने वालों के ख़िलाफ़ ताक़त का बे दरेग़ इस्तिमाल किया जा रहा है और मुक़द्दमात दर्ज करते हुए उन्हें इस से दूर करने की कोशिश की जा रही है लेकिन ये तहरीक कमज़ोर नीहं होगी और अपने मंतक़ी अंजाम तक पहूंच कर रहेगी । मर्कज़ी हुकूमत इलाक़ा तलंगाना को एक तरह से अमला नजरअंदाज़ करचुकी है । कांग्रेस के अवामी नुमाइंदे भी अलैहदा रियासत तलंगाना के मुतालिबा पर ऐसा लगता है कि हाईकमान के सामने बेबस और बेवुक़त होकर रह गए हैं । मर्कज़ी हुकूमत और कांग्रेस हाईकमान उन्हें कोई एहमीयत देने को तैय्यार नहीं है और ना उन की कोई बात सुनी जा रही है । महिज़ आनधराई ताक़तों की हिट धर्मी और उन के असर-ओ-रसूख़ की बिना पर इलाक़ा के अवाम के जायज़ और वाजिबी मुतालिबा को कुचला जा रहा है । ये दूसरी मर्तबा है जबकि इलाक़ा तलगाना में आम ज़िंदगी को ठप करदिया गया है । सरकारी नज़म-ओ-नसक़ तक मफ़लूज होकर रह गया है । हर शोबा हयात से ताल्लुक़ रखने वाले अफ़राद अलैहदा रियासत तलंगाना की तशकील चाहते हैं इस के बावजूद मर्कज़ी हुकूमत और कांग्रेस हाईकमान की बेहिसी का सिलसिला जारी है । कांग्रेस क़ियादत को शायद ये गुमान हो कि साबिक़ की तरह इस बार भी तलंगाना तहरीक को कुचल दिया जाएगा और वक़्त गुज़रने के साथ साथ ये तहरीक दम तोड़ जाएगी । ताहम इस का ये क़ियास और गुमान हक़ायक़ से बईद है । इस बार तलंगाना का जज़बा इतनी शिद्दत इख़तियार कर गया है कि इस के कम होने का सवाल ही पैदा नहीं होता । अब सिर्फ अलैहदा रियासत का क़ियाम ही वो वाहिद हल है जिस के ज़रीया इलाक़ा तलंगाना में हालात को क़ाबू में किया जा सकता है । मर्कज़ी हुकूमत और ख़ुद रियास्ती हुकूमत भी इस तहरीक पर कोई मुसबत सोच-ओ-फ़िक्र के साथ ग़ौर करने की बजाय उसे ताक़त के बल पर कुचलने के मंसूबे बना रही है । हुकूमतों को अपने मंसूबों में नाकामी का मुंह देखना पड़ेगा क्योंकि अब ये तहरीक तमाम हदूद से आगे निकल चुकी है और उसे क़ाबू में करना किसी के बस की बात नहीं रह गई है । अलैहदा तलंगाना मसला को सयासी मसलिहतों से बालातर होकर अवाम के जज़बात और उन के इंसाफ़ के मुतालिबा के तनाज़ुर में देखना चाहीए । ये कोई अलैहदा ममलकत के क़ियाम का मुतालिबा नहीं है । ये दस्तूर हिंद के दायरा में रहते हुए महिज़ एक अलैहदा रियासत की तशकील का मुतालिबा है जो हर लिहाज़ से वाजिबी है । निस्फ़ सदी से ज़्यादा अर्सा से नाइंसाफ़ीयों के ज़रीया इंतिहाई पसमांदगी मैं ढकीले गए अवाम अब अपने लिए इंसाफ़ मांगने को उठ खड़े हुए हैं और उन्हें सिवाए अलैहदा रियासत के क़ियाम के किसी और तरीक़ा से मुतमइन करना मुम्किन नहीं रह गया है । मर्कज़ी हुकूमत और कांग्रेस हाईकमान को अपनी सयासी मसलिहतों को बालाए ताक़ रखते हुए अपनी बेहिसी को ख़तन करना चाहीए । ये उम्मीदें ग़लत साबित होंगी कि किसी ना किसी तरीक़ा से एहतिजाज पर क़ाबू पालिया जाएगा। मर्कज़ी हुकूमत मुल़्क की दूसरी तमाम सयासी जमातों और ख़ुद सीमा आंधरा क़ाइदीन को भी एतिमाद में लेते हुए अवाम के जज़बात का पास-ओ-लिहाज़ करे और अलैहदा रियासत तलंगाना की तशकील के अमल का आग़ाज़ करे । तलंगाना में हालात को मामूल पर लाने का यही वाहिद और वाजिबी रास्ता रह गया है ।