तीन किस्म की इबादतें

खालिस बदनी:- जैसे नमाज और रोजा इसलिए कि इन दोनों इबादतों का मकसद अल्लाह तआला के लिए नफ्स का खुजूअ व खुशूअ और इसका रब के हुजूर तजल्लुल है। इन इबादतों में माल का कोई दखल नहीं है। खालिस माली जैसे जकात और सदका इसलिए कि इन दोनों इबादतों का मकसद असली मुस्तहकीने जकात व सदका को फायदा पहुंचाना है। बदनी व माली इबादत जैसे हज इसलिए कि इस इबादत में मनासिक व आमाले हज मसलन तवाफ व सई वगैरह के जरिए मोमिन बंदे का अल्लाह तआला के सामने आजिजी और तजल्लुल व खुजूअ पेश करना है और साथ ही साथ हज अदा करने की राह में माल का खर्च करना भी है।

तीन तरह की इबादतें:- एक तो वह जो खालिस तौफीकी है जिनके अवकात, अरकान, शरायत, सनन, कैफियते अदा, अजकार सब शरीअत ने तय कर दिए हैं जैसे नमाजे जुमा व ईदैन, रोजा व हज व एतकाफ वगैरह। दूसरी वह इबादत जिन मे कुछ उमूर मुतअय्यन है और गैर मुतअय्यन जैसे नमाज नफिल, नफिल रोजे, वजू तयम्मुम, गुस्ल, जनाबत, जकात व उमरा वगैरह।

तीसरी इबादतें जिनके अरकान, अवकात शरायत, कैफियते अदा शरअन तय नहीं है। मुतलकन उनकी बजाआवरी का हुक्म दिया गया है जैसे दुरूदशरीफ, जिक्रे अल्लाह और रसूल, जिक्रे सालेहीन वगैरह।

तीन दर्जे आमाल व इबादात के अदा करने के:- आमाल व इबादात के अदा करने के एतबार से तीन दर्जे हैं। अव्वल हस्बे तफसील फिकह शरायत के साथ अरकान अदा कर लिए जाएं। इससे आदमी फर्ज से आजाद हो जाता है यह आम के लिए है।

दो इबादात में कम से कम यह तसव्वुर हो कि माबूद हमें देख रहा है यह ख्वास का मकाम/ मुकाम है। तीसरी, इबादत मे यह हुजूर व शहूद हो गोया आबिद माबूद को देख रहा है यह अखसुल ख्वास का मकाम है।

तीन एहकाम:- अदा, कजा बातिल- जिस नमाज के लिए जो वक्त मुकर्रर है वह नमाज उसी वक्त पढ़ी जाए तो उसे अदा कहा जाएगा, वक्त के बाद पढ़ी गई तो उसे कजा कहेंगे और वक्त से पहले अगर किसी ने पढ़ी तो वह बातिल कहलाएगी। इसी तरह दीगर इबादतों के लिए भी इस्लामी शरीअत में वक्त की पाबंदी है। मसलन फर्ज रोजा के लिए रमजान, जकात के लिए साल का गुजरना और हज के लिए हज के दिनों का आना वगैरह (तफसीलात फिकह की किताबों में देखी जा सकती है)

तीन अवकात:- तुलूअ, गुरूब व निस्फ नहार। तुलूअ से मुराद सूरज का किनारा निकलने से लेकर पूरा निकल आने के बाद उस वक्त तक है कि उस पर आंख चैधियाने लगे और इतना कुल वक्त बीस मिनट है। निस्फ नहार से मुराद निस्फ नहार शरई से लेकर निस्फ नहार हकीकी यानी सूरज ढलने तक है जिस को जहवा-ए-कुबरा कहते हैं।

निस्फ नहार शरई मालूम करने का तरीका यह है कि आज जिस वक्त से सुबह सादिक शुरू हुई उस वक्त से लेकर सूरज डूबने तक जितने घंटे हो उनके दो हिस्से करो। पहले हिस्से के खत्म पर निस्फ नहार शरई शुरू हो जाएगी और सूरज ढलते ही खत्म हो जाएगी।

मुख्तलिफ मकामात व मुख्तलिफ जमानों में यह वक्त कम व बेश हो सकता है। उलेमा से पूछकर हर दिन और हर जगह का वक्त जवाल मालूम किया जा सकता है। और गुरूब से सूरज का मुकम्मल डूब जाना है।

मजकूरा तीन अवकात को अवकात मकरूहा कहते हैं। इन तीनों वक्तों में कोई नमाज जायज नहीं। न फर्ज न वाजिव न नफिल न अदा न कजा, न सजदा-ए-तिलावत न सजदा-ए-सहू। इन तीनों वक्तों में तिलावते कुरआन मजीद बेहतर नहीं। बेहतर यह है कि जिक्र व दुरूद शरीफ में मशगूल रहे। अलबत्ता इस रोज की अगर अस्र की नमाज नहीं पढ़ी तो अगरचे आफताब डूबता हो पढ़ ले मगर इतनी देर करना हराम। जनाजा मकरूह वक्त में लाया जाए तो पढ़े। हां पहले से तैयार रखा था मगर देर की यहां तक कि वक्त कराहत आ गया तो अब न पढ़े कि कराहत है। (मुफ्ती मोहम्मद अली काजी)

—————बशुक्रिया: जदीद मरकज़