तीन किस्म के आबिद व जाहिद

(मुफ्ती मोहम्मद अली काजी ) उलेमा ने फरमाया कि आबिदों की तीन किस्में हैं। पहला वह जो जहन्नुम के खौफ से इबादत करे दूसरा वह जो जन्नत की तमअ से इबादत करे तीसरा वह जो शौके इलाही में इबादत करे। कयामत में पहले से यानी रहबानी से कहा जाएगा कि तू जहन्नुम से निजात पा गया तो वह बोलेगा कि सब खूबियां अल्लाह को जिसने हमारा गम दूर किया (जहन्नुम से निजात दी) ।

दूसरे यानी जिनानी से कहा जाएगा कि तेरे लिए जन्नत वाजिब हो गई वह कहेगा कि सब खूबियां अल्लाह को जिसने अपना वादा पूरा किया। फिर तीसरे से कहा जाएगा कि अल्लाह ने तुमसे अपना दीदार बगैर वास्ते और बगैर किसी कैफ के अता फरमाया तो वह बोलेगा कि सब खूबियां अल्लाह को जिसने हमें उसकी राह दिखाई।

हजरत अली (रजि0) का फरमान है इबादत तीन तरह की होती है। ताजिरों की सी, गुलामों की सी और आजाद बंदो की सी। जो लोग अपनी किसी गरज से अल्लाह की इबादत करते हैं वह ताजिरों की सी इबादत करते हैं। जो लोग अल्लाह तआला से डर कर उसकी इबादत करते हैं वह गुलामों की सी इबादत करते हैं और जो लोग अल्लाह की नेमतों के शुक्रिया में उसकी इबादत करते हैं वह आजाद बंदो की सी इबादत करते हैं।

हजरत शेख शरफुद्दीन यहया मुनीरी अपनी किताबों में लिखते हैं कि हजरत इमाम अहमद इब्ने हंबल से रिवायत है कि जुहद तीन तरह का है- एक हराम चीजों का तर्क यह आम का जुहद है दूसरे हलाल चीजों से ज्यादा का तर्क यह खास का जुहद है और तीसरे ऐसी चीजों का तर्क जो बंदे को हक से गाफिल करती है और यह आरिफों का जुहद है।

अल्लाह तआला का इरशाद व हुक्म है -‘‘ और लोगो को तो यही हुक्म हुआ कि अल्लाह की बंदगी करें और उसी पर अकीदा लाते (इखलास के साथ)। क्योंकि अल्लाह तआला की मुखलिसाना इबादत करने वालों पर शैतान का जादू,शैतान का हमला और उसका वार नहीं चलता, यह वह खुद कहता है और बारगाहे इलाही में इसका इकरार करता है कि मैं जरूर इन सबको बेराह करूंगा मगर जो उनमें तेरे चुने हुए यानी मुखलिस बंदे हैं। (मेरा उनपर कोई वार काम नहीं करता) और अल्लाह ने भी उनकी हिफाजत अपने जिम्मे ले रखी है जैसा कि इसका ऐलान है कि
बेशक मेरे बंदो पर तेरा कुछ काबू नहीं।

अल्लाह तआला अपने हबीब (सल्लल्लाहू अलैहि वसल्लम ) के वसीले से हमें इखलासे नीयत के साथ इबादत करने की तौफीक अता फरमाए- आमीन।

बशुक्रिया: जदीद मरकज़