नई दिल्ली। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अहम सदस्य कमाल फारूकी ने बिल पर एतराज जताते हुए कहा कि सरकार बिना तैयारी के राजनीतिक स्टैंड के तहत बिल ला रही है. देश में 13 फीसदी मुस्लिम हैं. सरकार उनके लिए बिल ला रही है पर उसने उनसे राय लेना भी बेहतर नहीं समझा.
सुप्रीम कोर्ट एक बार में तीन तलाक को अवैध ठहरा चुका है. कोर्ट का फैसला ही कानून माना जाता है. फिर अलग से इसके लिए कानून बनाने की क्या जरूरत है. मोदी सरकार मनमानी करके बिल ला रही है, जो शरियत में सीधे-सीधे दखलअंदाजी है और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसे स्वीकार नहीं करेगा.
विधेयक के प्रावधानों पर ये हैं पर्सनल बोर्ड की आपत्तियां-सवालः-
1- एक समय में तीन तलाक देने को सुप्रीम कोर्ट अवैध ठहरा चुका है. यानी जब तीन तलाक माना ही नहीं जाएगा तो उसके लिए सजा किस बात की दी जाएगी?
2- ट्रिपल तलाक के साथ सरकार तलाक के अन्य प्रावधानों को भी खत्म करना चाहती है. है. सरकार इस अधिकार को कैसे छीन सकती है?
3- तलाक का मामला सिविल एक्ट के तहत आता है, जिसे सरकार बिल के जरिए क्रिमिनल एक्ट बना रही है. अगर ऐसा हुआ तो क्या तलाक के बाद पति-पत्नी के बीच सुलह की गुंजाइश खत्म नहीं हो जाएगी?
4- सरकार इस बिल के जरिए इस्लामिक शरियत में दखलअंदाजी करना चाहती है. मुस्लिम समुदाय को अपने धर्म के हिसाब से जीने का अधिकार संविधान से मिला है. क्या ये विधेयक मुस्लिमों की धार्मिक आजादी और संवैधानिक अधिकार का हनन नहीं है?
5- मोदी सरकार मुस्लिमों के लिए बिल ला रही है, लेकिन कीसी से चर्चा नही की न राय ली न मुस्लिम धर्मगुरुओं से, न मुस्लिम महिला संगठनों से और न मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से. बिना मुस्लिमों से विचार विमर्श के सरकार कैसे उनके लिए कानून बना सकती है?
6- बिल के तहत बच्चों की कस्टडी का भी प्रावधान है कि बच्चे मां के पास रहेंगे. इससे गरीब परिवारों पर बोझ बढ़ेगा, जो महिलाएं बच्चों को साथ नहीं रखना चाहती, उन्हें मजबूरी में बच्चों को रखना पड़ेगा. मुस्लिमों महिलाओं की गरीबी जगजाहिर है.
7- नए बिल के प्रावधान के तहत कोई अनजान व्यक्ति भी तीन तलाक को लेकर शिकायत कर सकता है, इसमें पत्नी की शिकायत जरूरी नहीं रखी गई है. ऐसे में अगर पत्नी नहीं चाहती कि उसका पति जेल जाए, तो भी किसी दूसरे के शिकायत पर उसे जेल भेज दिया जाएगा. ऐसे में परिवार टूट जाएंगे और बिखराव बढ़ेंगे.
8-तीन तलाक देकर जब पति जेल चला जाएगा तो उसकी पत्नी को गुजारा भत्ता कौन और कैसे देगा?