तीन तलाक के दुष्परिणाम से निपटने के लिए बना था निकाह हलाला: आरिफ मोहम्मद खान

सरकार बहुविवाह और निकाह हलालाके खिलाफ अदालत में अपना पक्ष मजबूती से रखने के लिए बेस्ट माइंड्स यूज कर रही है। उसे तीन तलाक मुद्दे पर सलाह देनेवाले सीनियर ऐडवोकेट आरिफ मोहम्मद खान का कहना है कि कुरान अनुचित बहुविवाह की इजाजत नहीं देता। खान जोर देकर कहते हैं कि एकल विवाह औरतों और मर्दों के लिए ‘कुदरती और इकलौता’ विकल्प है।

खान ने ईटी से बातचीत में कहा कि तीन तलाक को सही बताए जाने के बाद उसके पैरोकारों ने अपना रोजगार पक्का करने के लिए निकाह हलाला बनाया था, जिसे कुरान सपॉर्ट नहीं करता। पिछले साल जब केंद्र सरकार तीन तलाक बिल का मसौदा बनाने से पहले एक्सपर्ट्स से सलाह कर रही थी, तब औरतों का शोषण करनेवाली इस प्रथा के हरेक पहलू पर खान से व्यापक चर्चा की गई थी।

सरकार ने अब सुप्रीम कोर्ट में निकाह हलाला और बहुविवाह के खिलाफ मजमबूत मामला बनाने के लिए अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल की अगुआई में एक टीम बनाई है। शीर्ष अदालत ने पिछले हफ्ते कहा था कि वह निकाह हलाला की वैधता जांचने के लिए पांच जजों की संविधान पीठ बनाएगा। खान ने बहुविवाह पर कुरान को उद्धृत करते हुए कहते हैं कि तीन तलाक के दुष्परिणाम से निपटने के लिए निकाह हलाला बनाया था।

खान ने कहा, ‘तीन तलाक खत्म होने से ये सामाजिक बुराइयां भी खत्म हो जाएंगी। मैं इस मामले में पीएम की मंशा को समझ सकता हूं। वह वही कर रहे हैं जो हर सरकार को करना चाहिए। मजलूमों के हक की बात कर रहे हैं। सैकड़ों मुसलमान औरतें और उनके परिवार नाइंसाफी से बच जाएंगे।’

बहुविवाह पर खान ने कहा कि पैगंबर मुहम्मद ने अपनी बेटी के निकाहनामे में एकल विवाह की शर्त रखवाई थी। उन्होंने कहा, ‘यह हक सभी मुसलमान पैरंट्स और बेटियों का है।’ उन्होंने कहा कि तलाक कैसे हो सकता है, इसके नियम कुरान में साफ बताए गए हैं। इस्लाम में दो बार तलाक देने और फिर उसी औरत से निकाह करने की आजादी है। तीसरे तलाक के बाद शौहर उसी औरत से निकाह करने का हक खो देता है।

तलाक के बाद औरत और मर्द अलग बिस्तर पर सोते हैं। उन्हें पहले समझाया और फिर डांटा जाता है। फिर बीच बचाव किया जाता है और राजीनामा नहीं होने पर तलाक का ऐलान होता है। उसके बाद औरत और मर्द को सुलह सफाई के लिए तीन महीने दिए जाते हैं। इस दौरान दोनों साथ रहते हैं, एक बिस्तर पर सोते हैं। उनके करीब आने पर तलाक खारिज हो जाता है, नहीं तो तीसरे महीने में तलाक पक्का हो जाता है।

खान ने कहा कि बदकिस्मती से तीन तलाक ने प्रथा का रूप ले लिया और गुस्से और जल्दबाजी में दिए गए तलाक की काट के तौर पर औरतों को ‘निकाह हलाला’ के लिए मजबूर किया जाने लगा। खान ने कहा, ‘यह कुछ और नहीं बस कुरान में जो कुछ लिखा गया है, उसकी गलत व्याख्या है।’

साभार- नवभारत