पहनने को अच्छे कपड़े खाने को अच्छा खाना। फिर भी आंखें नम है। खामोश चेहरा बस एक ही रट लगाये है. घर जाना है, मम्मी के पास जाना है। ये हाल है तीन नन्ही और मासूम बहनों का।
उनके वालिद ने उन्हें तीन दिन पहले ट्रेन में बैठा कर दर-ब-दर भटकने के लिए छोड़ दिया था। फिलहाल, ये तीनों बहनें प्रयास भारती ट्रस्ट के अनाथालय में रह रही हैं। तीनों बहनों में छह साला नंदिनी ही है, जो कुछ बता पा रही है, मगर वह भी वाजेह नहीं। बाकी दोनों लड़कियां अपनी बड़ी बहन के साथ ही रहती हैं। एक ही रट-घर जाना है यहां नंदिनी को पहनने को अच्छे कपड़े और खाने को छप्पन भोग तो मिल रहे हैं, लेकिन उसे यह पसंद नहीं। उसे मां के हाथों से बना चोखा -भात ही पसंद है।
मां की आ रही याद : तीनों बहनों में नंदिनी बड़ी है। उसकी उम्र छह साल है। मां से बिछुड़ने पर वह रो रही है। वह बरौनी की जिक्सन स्कूल में एलकेजी में पढ़ती थी। अचानक वालिद राहुल राज ने नानी घर ले जाने की बात कह नंदिनी और उसके दोनों बहनें निधि और रानी को ट्रेन पर छोड़ चले गये।
कंघी से मारते थे पापा : नंदिनी ने अपनी मां का नाम रिंकू बताया। कहा-पापा का नाम राहुल राज है। वह मोबाइल दुकान पर काम करते हैं। प्रयास भारती ट्रस्ट की सुप्रीडेंटेड सीमा कुमारी ने कहा, बरौनी जंकशन पर 27 दिसंबर, 2013 को 10 बजे जीआरपी ने इन बच्चियों को गंगासागर एक्सप्रेस से उतारा। 28 को इन्हें हमें सौंप दिया गया। तब से ये तीनों बच्चियां हमारे पास रह रही है। बड़ी नंदिनी थोड़ी समझदार है। निधि और रानी बहुत छोटी है। वे कुछ बता नहीं पा रही।